लौटा जहरीला स्मॉग, 4-5 दिनों तक नहीं मिलेगी राहत
दिल्ली एनसीआर, देश में राजनीतिक सत्ता का केन्द्र. इस दीपावली दिल्ली एनसीआर में पठाखे नहीं फोड़े गए जिससे प्रदूषण पर लगाम लगाया जा सके. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केन्द्र सरकार की प्रदूषण पर लगाम लगाने की एक कोशिश विफल हो गई.
बीते 48 घंटे से भी ज्यादा समय से दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र पर घना कोहरा छाया है. यह कोहरा घनी ठंड में बनने वाला कोहरा नहीं है. बल्कि आसपास के राज्यों में फैक्ट्री और खेतों से उठती वह धुंध है जिससे प्रदूषण विभाग के प्रदूषण मापने वाले मीटर की सूई उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है.
दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में बढ़ा प्रदूषण का स्तर सामान्य से उस उच्चतम स्तर पर है जहां लोगों सांस लेने में दिक्कत होने लगती है. स्वास्थ विभाग के मुताबिक ज्यादा दिन तक इस प्रदूषण भरी हवा में सांस लेने से गंभीर बिमारी हो सकती है. यह हवा क्षेत्र में अधिक उम्र के लोगों के साथ-साथ बच्चों के लिए ज्यादा नुकसानदायक है.
भारतीय मौसम एजेंसी के हवाले से कहा जा रहा है कि नासा की सैटेलाइट इमेज से मिले नवीनतम चित्रों के मुताबिक दिल्ली एनसीआर से सटे राज्य हरियाणा, राजस्थान और पंजाब में अधिक रोशनी देखी जा रही है. दरअसल नासा की सैटेलाइट चित्रों को फायर मैपर(वह यंत्र जो अधिक तापमान अथवा आग लगने की स्थिति बताता है) की मदद से देखने पर इन राज्यों में आग जैसी स्थिति नजर आ रही है.
MODIS ने बताया इन इलाकों में लगी है आग
नासा का यह फायर इंफॉर्मेशन फॉर रिसोर्स मैनेजमेंट सिस्टम (फर्म्स) लगभग रियल टाइम (एनआरटी) पर पृथ्वी के उस हिस्से से आग और तापमान का आंकड़ा भेजता है जहां आग लगी है. नागा का सैटेलाइट आग लगने वाली किसी जगह के ऊपर से गुजरता है तो उसके तीन घंटे के बाद यह चित्र नासा के कंप्यूटर पर पहुंच जाता है. इस चित्र को नासा की सैटेलाइट के जरिए मॉडरेट रेजोल्यूशन इमेजिंग स्पैक्ट्रोरेडियोमीटर (मोदीज-MODIS) और विजिबल इंफ्रारेड इमेजिंग रेडियोमीटर सूट (वीर्स-VIIRS) तरीकों से लिया जाता है.
क्यों लगी है हरियाणा, राजस्थान और पंजाब में आग?
देश में खरीफ फसल खेतों में तैयार हो रही है. खरीफ फसल के लिए महत्वपूर्ण दक्षिण-पश्चिम मानसून जा चुका है. वहीं देश में मौसम बदल रहा है. गर्मी जा रही और ठंड आने वाली है. इस समय इन राज्यों में किसानों को नई खेती करने का एक आखिरी मौका मिलता है. लिहाजा इस मौसम में बुआई के लिए खेत तैयार करना होता है. ऐसी स्थिति में इन राज्यों में ज्यादातर किसान अपना समय और मेहनत बचाने के लिए खेतों में पड़े अनाज के कूड़े को जला देते हैं.
आमतौर पर किसानों द्वारा यह काम दीपावली के मौके पर कर दिया जाता है. लेकिन इस बार दिल्ली-एनसीआर में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पटाखों पर प्रतिबंध लग गया था. वहीं इन दिनों राज्यों में प्रशासन भी चुस्त थी. गौरतलब है कि उत्तर भारत में खेतों का कूड़ा जलाने का काम 1980 के दशक में तब शुरु हुआ जब खेतों में बुआई-जुताई के लिए मशीनों का इस्तेमाल शुरू हुआ.
इससे पहले किसान इस कूड़े को वापस खेत में मिला देते थे. लेकिन मशीन आने के बाद से खेतों में कटाई के बाद एक-एक फुट लंबी खूंटे निकलती है. इन खूंटों को निष्पादित करना किसानों के लिए बड़ी चुनौती बन जाती है लिहाजा वह अपना समय और मेहनत बचाने के लिए इसे जलाने का काम करते हैं.
दो साल पहले देश के जाने-माने हॉर्ट सर्जन डॉ नरेश त्रेेहन ने इंडिया टुडे को बताया था कि दिल्ली में इस दौरान होने वाला पॉल्यूशन आदमी के फेफड़ों पर बुरा असर डाल रहे हैं. यह स्थापित करने के लिए डॉ त्रेहन ने नई दिल्ली में एक आदमी के फेफड़ों की तुलना हिमाचल प्रदेश में रहने वाले एक अन्य आदमी के फेफड़ों से की थी. डॉ त्रेहन के मुताबिक दिल्ली में जारी प्रदूषण से आदमी के फेफड़ों पर बुरा असर पड़ रहा है और वह अस्थमा समेत कई गंभीर बिमारियों को दस्तक दे रहा है.