बेगुनाहों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल हो रहा है गोहत्या क़ानूनः इलाहाबाद हाई कोर्ट

 इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में गोहत्या क़ानून का इस्तेमाल बेगुनाहों के ख़िलाफ़ किया जा रहा है.



हाई कोर्ट ने कहा है कि छोड़ दिए गए पशुओं की सुरक्षा के लिए क़दम उठाए जाने चाहिए और क़ानून का इस्तेमाल उसमें निहित भावना से होना चाहिए.

अक्तूबर में गोहत्या क़ानून के तहत गिरफ़्तार किए गए एक अभियुक्त को ज़मानत देते हुए जस्टिस सिद्धार्थ ने कहा, "क़ानून का इस्तेमाल बेग़ुनाहों के ख़िलाफ़ किया जा रहा है. जहां भी मांस मिलता है उसे बिना फोरेंसिक लैब में टेस्ट कराए गाय का मांस बता दिया जाता है. अधिकतर मामलों में मांस को परीक्षण के लिए भेजा तक नहीं जाता. अभियुक्त उस अपराध के लिए जेल में रहते हैं जो हो सकता है हुआ ही ना हो."

आदेश में कहा गया, "जब गायों को ज़ब्त किया हुआ दिखाया जाता है तो रिकवरी का कोई मेमो तैयार नहीं किया जाता और किसी को नहीं पता कि रिकवरी के बाद गायें कहां चली जाती हैं."

उत्तर प्रदेश सरकार के डाटा के मुताबिक राज्य में राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के तहत हुईं कुल 139 गिरफ़्तारियों में से आधी से ज़्यादा (76) गिरफ़्तारियां गोहत्या के मामलों में हुई हैं. इस साल 26 अगस्त तक राज्य में गोहत्या के 1716 मामले दर्ज किए गए हैं और चार हज़ार से अधिक लोग गिरफ़्तार किए जा चुके हैं. डाटा के मुताबिक 32 मामलों में पुलिस कोई सबूत पेश नहीं कर सकी और क्लोज़र रिपोर्ट लगानी पड़ी.


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