सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा बहाल, मोदी सरकार को झटका

सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने के फ़ैसले को निरस्त कर दिया है.
छह दिसंबर, 2018 को सुनवाई के बाद चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ़ की पीठ ने फ़ैसला सुरक्षित रखा था.
अदालत ने मंगलवार (आठ जनवरी, 2019) को अपना फ़ैसला सुनाया, लेकिन जस्टिस गोगोई छुट्टी पर थे इसलिए जस्टिस किशन कौल ने फ़ैसला पढ़ कर सुनाया.
सर्वोच्च अदालत ने ये भी कहा है कि आलोक वर्मा इस दौरान कोई नीतिगत फ़ैसला नहीं ले पाएंगे. आलोक वर्मा चाहें तो प्रशासनिक फ़ैसले ले सकते हैं.
लेकिन अदालत ने ये साफ़ नहीं किया है कि नीतिगत फ़ैसले क्या होंगे और प्रशासनिक फ़ैसले कौन होंगे.
कोर्ट ने कहा कि सरकार ने आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने के मामले में पूरी प्रक्रिया का पालन नहीं किया.
अदालत ने इस मामले को चयन समिति के पास भेजने का आदेश दिया है.
चयन समिति के सदस्य प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और चीफ़ जस्टिस होते हैं.
अब एक सप्ताह के अंदर चयन समिति की बैठक होगी जिसमें आलोक वर्मा के बारे में अंतिम फ़ैसला लिया जाएगा. सीबीआई निदेशक की नियुक्ति इसी चयन समिति की सिफ़ारिश पर होती है.
अदालत ने अपने फ़ैसले में कहा कि सीबीआई निदेशक को छुट्टी पर भेजने या उनके अधिकार छीनने के लिए भी चयन समिति ही अंतिम फ़ैसला ले सकती है.
ग़ौरतलब है कि छुट्टी पर भेजे जाने के आदेश के ख़िलाफ़ सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे. कॉमन कॉज़ नाम की एक ग़ैर-सरकारी संस्था ने भी सरकार के फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि सरकार अपने लोगों की जगह बनाने की कोशिश कर रही थी. उनका कहना था, ''सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला स्वागत योग्य है. यह सरकार के लिए एक सबक़ की तरह है कि अगर वो ग़लत करेंगे तो कोर्ट उन्हें बख़्शेगा नहीं.''
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि केंद्र सरकार ने सीवीसी की सिफ़ारिश पर दोनों अधिकारियों को छुट्टी पर भेजने का फ़ैसला लिया था. जेटली ने कहा कि सीबीआई की विश्वसनीयता, स्वायत्ता और प्रतिष्ठा को देखते हुए सरकार को ये फ़ैसला लेना पड़ा था.
सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने अदालत के फ़ैसले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ''आज़ाद भारत में किसी भी दूसरी सरकार ने ऐसा नहीं किया जिस तरह से मोदी सरकार संस्थाओं को समाप्त करने की कोशिश कर रही है. क्योंकि ये सरकार भारी भ्रष्टाचार से डरी हुई है और इसका शीर्ष नेतृत्व ग़लत काम करते हुए पकड़ा गया है.''
राष्ट्रीय जनता दल के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने कहा कि जिस दिन अखिलेश यादव और मायावती मिले, उसी दिन सीबीआई की रेड पड़ रही है.
"हम आगाह करते हैं सत्ता प्रतिष्ठान को कि आपलोग वहां हमेशा नहीं रहेंगे. उन्होंने एक नई कार्यशैली विकसित की है कि वो एजेंसियों का इस्तेमाल राजनीतिक फ़ायदे के लिए कर रहे हैं."
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि आलोक वर्मा बहाल तो हो गए हैं लेकिन अभी उनकी शक्तियां पूरी तरह उन्हें नहीं दी गई हैं.
सुप्रीम कोर्ट के बाहर भूषण ने कहा, "सरकार इस मामले को प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष और चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया वाली उच्च स्तरीय समिति के सामने एक हफ्ते में लाए. जब तक वो उच्च स्तरीय समिति इस पर निर्णय न ले, तब तक आलोक वर्मा कोई बड़े नीतिगत फ़ैसले नहीं ले सकते हैं."
प्रशांत भूषण ने इसे आलोक वर्मा की आंशिक जीत क़रार दिया.
मोदी की केंद्र सरकार ने 23 अक्तूबर की आधी रात को सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेज दिया था. इसके साथ ही ज्वाइंट डायरेक्टर एम नागेश्वर राव को अंतरिम निदेशक की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी.
इसके साथ ही क़रीब 13 अधिकारियों का तबादला भी कर दिया गया था.
सरकार का कहना था कि उन्होंने इसलिए हस्तक्षेप किया क्योंकि संस्थान के दो शीर्ष अधिकारी आपस में लड़ रहे थे और इस कारण संस्थान की छवि ख़राब हो रही थी.
आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना एक दूसरे पर न केवल खुले-आम भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे थे बल्कि आलोक वर्मा के आदेश पर सीबीआई ने राकेश अस्थाना के ख़िलाफ़ एफ़आईआर भी दर्ज कर लिया था.

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