समय से पहले रिहाई, रहम नहीं बल्कि सरकार की साज़िश है: चंद्रशेखर आज़ाद रावण
क़रीब 15 महीने तक जेल में रहने के बाद गुरुवार देर रात भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आज़ाद रावण को रिहा कर दिया गया.
चंद्रशेखर रावण को राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून (रासुका) के तहत गिरफ़्तार किया गया था. इस क़ानून को तीन-तीन महीने के लिए चार बार बढ़ाया गया. उन्हें नवंबर में रिहा किया जाना था लेकिन सरकार ने पहले ही रिहा कर दिया.
चंद्रशेखर का कहना है कि सरकार के इस क़दम के पीछे उन्हें किसी राजनीतिक साज़िश की बू आ रही है.
बीबीसी से ख़ास बातचीत में चंद्रशेखर ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट में सरकार को जवाब दाख़िल करना था. सरकार को पता था कि उसे फ़टकार लगने वाली है. दूसरे, रासुका को चार बार बढ़ाया जा चुका था, अब आगे वो बढ़ नहीं सकती थी."
वो कहते हैं, "मुझे तो यह एक साज़िश लग रही है. आने वाले दिनों में किसी मामले में फंसाकर फिर से जेल में न डाल दें.''
चंद्रशेखर की रिहाई के संबंध में सरकार की ओर से जो बयान जारी हुआ है, उसके मुताबिक़, चंद्रशेखर को उनकी मां की वजह से रिहा किया गया है क्योंकि उन्होंने इसके लिए एक प्रार्थना पत्र दिया था.
लेकिन चंद्रशेखर बताते हैं कि माँ की अपील पर यदि सरकार को रिहा करना होता तो वो पहले ही कर देती क्योंकि ये अपील जुलाई महीने में की गई थी लेकिन रिहा अब किया जा रहा है और राजनीतिक फ़ायदा लेने की कोशिश हो रही है.
सरकार से ख़फ़ा हैं चंद्रशेखर रावण
चंद्रशेखर को पिछले साल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हुए जातिगत संघर्ष का ज़िम्मेदार बताते हुए यूपी पुलिस ने गिरफ़्तार किया था. उन्हें हाईकोर्ट से ज़मानत मिल गई थी लेकिन रिहाई से ठीक पहले उन पर रासुका लगा दी गई और फिर वो जेल में ही रह गए.
समयपूर्व रिहाई पर चंद्रशेखर का कहना है, "ग्यारह महीने तो मैंने जेल में काट दिए, कुछ दिन पहले यदि रिहा भी कर दिया तो क्या फ़ायदा?"
केंद्र और राज्य में मौजूद बीजेपी की सरकार से बेहद ख़फ़ा चंद्रशेखर का कहना है कि वो अब अपने समर्थकों को एकजुट करने का काम करेंगे.
उनके मुताबिक़ "हमारे पास वोट की ताक़त है और हम इसका इस्तेमाल करेंगे. हम किसी राजनीतिक दल के साथ नहीं जुड़े हैं लेकिन दलितों का उत्पीड़न करने वाली सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए काम करेंगे."
'बीजेपी दलितों का उत्पीड़न कर रही है'
चंद्रशेखर की रिहाई के सरकार के फ़ैसले के बाद ये भी कहा जा रहा है कि इससे बीजेपी ने दलितों को खुश करने के लिए एक नया दांव चला है, लेकिन चंद्रशेखर रावण और उनके घर पर मौजूद तमाम स्थानीय लोगों के तेवरों को देखकर शायद ही कोई यह कह सके कि सरकार के इस क़दम से बीजेपी के प्रति भीम आर्मी के समर्थकों में कोई हमदर्दी जगी है.
सहारनपुर के छुटमलपुर क़स्बे में स्थित चंद्रशेखर रावण के घर पर शुक्रवार को दिन भर लोगों का तांता लगा रहा.
घर के बाहर मौजूद तमाम लोगों से बातचीत का लब्बो-लुबाब यही था कि उनकी जल्दी रिहाई का फ़ैसला इसलिए नहीं लिया गया है कि सरकार अब चंद्रशेखर को दोषी नहीं मान रही है, बल्कि आगे उन्हें एनएसए के तहत जेल में रखा ही नहीं जा सकता था, इसलिए रिहा किया गया है.
चंद्रशेखर रावण बातचीत में इस बात से साफ़ इनकार करते हैं कि उनकी किसी राजनीतिक दल से हमदर्दी है, लेकिन ये बात साफ़तौर पर कहते हैं कि बीजेपी दलितों का उत्पीड़न कर रही है, इसलिए हमारा उससे विरोध है.
जानकारों के मुताबिक़, बीजेपी ने चंद्रशेखर की रिहाई का फ़ैसला पिछले दिनों मेरठ में हुई राज्य कार्यकारिणी की बैठक में ही कर लिया था, क्योंकि स्थानीय स्तर पर बीजेपी नेताओं ने सरकार से ऐसा करने की अपील की थी.
सहारनपुर में वरिष्ठ पत्रकार रियाज़ हाशमी कहते हैं, "सहारनपुर ज़िले के शब्बीरपुर कांड को राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के दलित विरोध का प्रतीक बनाकर पेश किया गया. बाद में चंद्रशेखर की गिरफ़्तारी और फिर उन पर रासुका लगाने से ये विरोध और मुखर होकर सामने आया."
"तमाम दलित संगठन भी इस मामले में सहारनपुर से लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर पर जुटे थे. ऐसे में संघ और भाजपा अपने ऊपर लगे दलित विरोध के धब्बे साफ़ करने में लगातार जुटी रहीं."
वो कहते हैं, "चंद्रशेखर की रिहाई से बीजेपी को ये भी उम्मीद होगी कि भीम आर्मी को बीएसपी के ख़िलाफ़ खड़ा किया जा सकता है, लेकिन ऐसा फिलहाल दिख नहीं रहा है."
रावण की रिहाई पर ख़ामोश बीजेपी
रिहाई के ठीक बाद जेल के बाहर जुटे समर्थकों को संबोधित करते हुए चंद्रशेखर रावण ने भी साफ़तौर पर इस तरह के संकेत दिए थे. वहीं इस मामले में बीजेपी नेताओं ने फ़िलहाल चुप्पी ही साध रखी है.
सहारनपुर में बीजेपी का कोई नेता चंद्रशेखर की रिहाई का न तो समर्थन कर रहा है और न ही विरोध कर रहा है. एक बीजेपी नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, "समर्थन करेंगे तो लोग पूछेंगे कि अब तक क्यों जेल में रखा, और विरोध कैसे करें जब सरकार ने रिहा किया है."
भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आज़ाद उर्फ़ रावण पर पिछले साल 9 मई को सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में हुई हिंसा और सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट डालने के आरोप में कुल आठ मामले दर्ज़ हुए हैं.
सभी मामलों में उन्हें स्थानीय अदालत और हाईकोर्ट से ज़मानत मिल चुकी थी लेकिन उसके बाद उन्हें रासुका के तहत गिरफ़्तार किया गया था. अब सरकार ने रासुका को निरस्त करके उन्हें रिहा कर दिया है.
शब्बीरपुर में दलितों और ठाकुरों के बीच हुए हिंसक संघर्ष में शब्बीरपुर के ग्राम प्रधान शिवकुमार समेत कुल छह लोगों को रासुका के तहत गिरफ़्तार किया गया था.
इनमें तीन ठाकुर समुदाय के लोग भी शामिल थे, जिन्हें दो हफ़्ते पहले ही रिहा कर दिया गया था.
चंद्रशेखर और उनके दो अन्य साथियों की रिहाई पर शब्बीरपुर के ठाकुर समुदाय के लोगों में नाराज़गी ज़रूर है लेकिन आधिकारिक तौर पर वे लोग कोई भी प्रतिक्रिया देने से बच रहे हैं.