येदियुरप्पा ने मानी हार, विश्वास मत परीक्षण से पहले ही दिया इस्तीफा

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा ने अपनी हार मानते हुए विश्वास मत परीक्षण से पहले ही इस्तीफा दे दिया। उनकी सरकार मात्र तीन दिन ही चल सकी। इससे पहले कर्नाटक में जमकर सियासी नाटक हुआ। विधान सभा में विश्वास मत प्रस्ताव पेश करते हुए येदियुरप्पा ने कहा कि कांग्रेस और जेडीएस ने हारी हुई बाजी जीतने के लिए एड़ी चोटी एक कर दिया है। भाषण देते हुए भावुक येदियुरप्पा ने कहा कि वो मरते दम तक राज्य के किसानों के लिए लड़ते रहेंगे। उन्होंने कहा कि अगर राज्य में बीजेपी की सरकार होती तो राज्य में विकास होता मगर अब ऐसा नहीं हो सकेगा। अपने पंद्रह मिनट के भाषण में येदियुरप्पा ने भावुक अंदाज में राज्य की जनता का शुक्रिया अदा किया और कहा कि 2013 में बीजेपी को 40 सीट मिली थी लेकिन अब अगले चुनाव में बीजेपी को राज्यवासी स्पष्ट जनादेश देंगे। उन्होंने सदन में ही इस्तीफा देने की घोषणा की और कहा कि वो सदन से निकलकर सीधे राजभवन जाएंगे। सदन में बहुमत परीक्षण की नौबत नही आई।

अब माना जा रहा है कि राज्यपाल वजुभाई वाला कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के नेता एचडी कुमारस्वामी को सरकार बनाने का न्योता देंगे। बता दें कि हालिया विधान सभा चुनावों में 222 सीटों पर मतदान हुए थे। इनमें से 104 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी, जबकि कांग्रेस को 78 और जेडीएस-बीएसपी गठबंधन को 38 सीटें मिली थीं। राज्यपाल ने बुधवार (16 मई) को सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी को सरकार बनाने का न्योता दिया था। उसके अगले दिन गुरुवार (17 मई) को बीजेपी के येदियुरप्पा ने सीएम पद की शपथ ली थी। राज्यपाल ने उन्हें 15 दिनों के अंदर बहुमत साबित करने का वक्त दिया था लेकिन कांग्रेस-जेडीएस ने राज्यपाल के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (18 मई) को बीजेपी को तिहरा झटका देते हुए राज्यपाल के फैसले को पलट दिया था और 28 घंटे के अंदर बहुमत परीक्षण कराने का आदेश दिया था। येदियुरप्पा सरकार पर नीतिगत फैसले लेने पर भी सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। प्रोटेम स्पीकर बनाए जाने पर भी कांग्रेस-जेडीएस ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इस पर कोर्ट ने कांग्रेस-जेडीएस को राहत नहीं दी और बोपैया को ही प्रोटेम स्पीकर बरकरार रखा मगर बहुमत परीक्षण की वीडियो रिकॉर्डिंग और लाइव टेलीकास्ट का आदेश दिया।
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कांग्रेस महासचिव गुलाम नबी आजाद ने इसे लोकतंत्र, संविधान और कानून की जीत करार दिया है और कहा है कि उनके विधायकों ने बीजेपी, केंद्र सरकार और राज्य सरकार के हरेक लालच और प्रलोभन को ठुकरा दिया और लोकतंत्र की रक्षा करने में अपनी भूमिका निभाई।

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