गरीबों की गाढ़ी कमाई लूट रहे हैं सरकारी बैंक, अकेले स्टेट बैंक ने एक तिमाही में वसूले 235 करोड़

बचत खातों में न्यूनतम जरूरी रकम रखने के प्रावधान की आड़ में सरकारी बैंक गरीबों की खून-पसीने की कमाई पर डाका डाल रहे हैं। अकेले भारतीय स्टेट बैंक ने एक अप्रैल से 30 जून तक की तिमाही के दौरान इस मद में अपने खाता धारकों से 235 करोड़ रुपए की कमाई कर ली। बाकी बैंक भी इसी राह पर हैं। भारतीय स्टेट बैंक के बचत खाताधारक के लिए अपने खाते में हर समय न्यूनतम पांच हजार रुपए की रकम जमा रखना जरूरी है। चालू वित्तीय वर्ष की शुरुआत से ही सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने बचत खाताधारकों के लिए अपने खाते में हमेशा एक निश्चित न्यूनतम रकम जमा रखने की बंदिश लागू कर दी थी। उससे कम रकम होने की दशा में खाताधारक से बैंक बतौर दंड मोटा जुर्माना वसूल रहे हैं। ज्यादातर खाताधारकों को इस दंडात्मक प्रावधान की जानकारी ही नहीं है। आमतौर पर गरीब और निम्न आयवर्ग के लोग ही सरकारी बैंकों में अपने बचत खाते रखते हैं। व्यवसायी अपने चालू खातों से कारोबार करते हैं और ज्यादा सुविधाओं व ब्याज के लोभ में सरकारी बैंकों के बजाए बचत खाते निजी क्षेत्र के बैंकों में रखते हैं।
न्यूनतम धनराशि जमा रखने में उन्हें कोई अड़चन भी नहीं होती। नीमच (मध्यप्रदेश) के आरटीआइ कार्यकर्ता चंद्रशेखर बाकी पेज 8 पर गौड़ ने भारतीय स्टेट बैंक से इस बाबत सूचना मांगी थी। वे जानना चाहते थे कि न्यूनतम धनराशि जमा रखने की बंदिश अमल में आने के बाद बैंक ने अपने बचत खाताधारकों से इस मद में कितना अर्थ दंड वसूल लिया। पांच अगस्त को बैंक के सीपीआइओ ने उन्हें पहली ही तिमाही की कमाई 235 करोड़ बताई तो गौड़ हैरान रह गए। उनका आरोप है कि प्रधानमंत्री ने जीरो बैलेंस के प्रावधान वाले जो जनधन खाते बैंकों में खुलवाए थे, उनसे हो रहे घाटे की भरपाई बैंक अब इस बेतुके प्रावधान की आड़ लेकर कर रहे हैं।  ज्यादातर खाताधारकों को अपने साथ हो रही इस लूट का आभास बैंक पहुंचने पर ही हो रहा है। गरीब लोग अपने खातों से पैसा निकालने बैंक शाखा जाते हैं तो उन्हें पता लगता है कि खाते में पड़ी 2000 रुपए की सारी रकम तो चार सौ रुपए महीने के अर्थ दंड के मद में पहले ही खत्म हो गई। एक तरफ गरीबों के साथ ऐसी ठगी के प्रावधान अपनाए जा रहे हैं, तो दूसरी तरफ बड़े कारोबारियों से अरबों रुपए के कर्ज की वसूली तक बैंक नहीं कर पा रहे। नतीजतन उनका एनपीए बढ़ कर अरबों का आंकड़ा पार कर चुका है।
गौड़ का आरोप है कि नोटबंदी के दिनों में भी भारतीय स्टेट बैंक और उसके सहयोगी बैंकों ने अपने खाताधारकों के साथ खूब छल किया। भारतीय रिजर्व बैंक ने 14 नवंबर, 2016 को सभी बैंकों को निर्देश दिए थे कि नोटबंदी की अवधि के दौरान किसी भी खाता धारक से एटीएम चार्ज न वसूला जाए। भले ही वे इस दौरान कितनी ही बार पैसे क्यों न निकालें। दूसरे बैंकों ने तो इसका पालन किया पर भारतीय स्टेट बैंक ने कोई परवाह नहीं की। नतीजतन जुलाई से सितंबर 2016 के दौरान एटीएम चार्ज के रूप में होने वाली इस बैंक की आमदनी 285.74 करोड़ रुपए से बढ़ कर अक्टूबर से दिसंबर 2016 वाली नोटबंदी की अवधि से संबंधित तिमाही में 435 करोड़ रुपए हो गई। भारतीय रिजर्व बैंक से जब गौड़ ने सूचना के अधिकार के कानून के तहत पूछा कि उसके एटीएम चार्ज वसूल नहीं करने के निर्देश का क्या सभी बैंकों ने पालन किया था। तो जवाब मिला कि उसे इसकी बाबत जानकारी नहीं है।
अगर कोई किसी बैंक विशेष के बारे में जानकारी चाहेगा तो उससे मंगा कर दे दी जाएगी। इसके बाद गौड़ ने यही जानकारी भारतीय स्टेट बैंक से मांगी तो कोई जवाब नहीं मिला। साफ है कि सरकारी बैंक ने ही रिजर्व बैंक के निर्देश को ठेंगा दिखा दिया। इस दौरान खुद प्रधानमंत्री ने भी लोगों को भरोसा दिया था कि वे बैंकों में भीड़ लगाने के बजाए एटीएम से पैसा निकाल लें, उनसे कोई चार्ज नहीं लिया जाएगा। न्यूनतम धनराशि नहीं रखने पर खाते से कटौती करने का बैंकों को अधिकार क्या मिल गया, खाता धारक परेशान हो रहे हैं। अब कोई बैंक जरूरतमंद गरीब का खाता भी नहीं खोलता। एक तरफ तो जन धन खाते खुलवा कर उनका खूब प्रचार किया गया, दूसरी तरफ अब कोई ध्यान नहीं दे रहा कि जो उस वक्त खाते नहीं खुलवा पाए थे उनके खाते अब कैसे खुलेंगे?


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