मार्शल अर्जन सिंह: जिन्हें लॉर्ड माउंटबेटन खुद चलकर मेडल देने आए थे

भारतीय वायुसेना के सबसे वरिष्ठ और फ़ाइव स्टार रैंक तक पहुंचे इकलौते मार्शल अर्जन सिंह का शनिवार को निधन हो गया. उन्हें दिल का दौरा पड़ा था जिसके बाद उन्हें दिल्ली के आर्मी अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
अर्जन सिंह को 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में अहम भूमिका निभाने के लिए याद किया जाता है.
जब लड़ाई शुरू हुई थी तो अर्जन सिंह एयर मार्शल थे. लड़ाई ख़त्म हुई तो उन्हें प्रमोशन देकर मार्शल बनाया गया.
इस युद्ध के दौरान उनका नेतृत्व बेहद दमदार था. उदारहण के तौर पर 1 सितंबर 1965 को जब पाकिस्तान का हमला हुआ, छम में उस वक्त भारतीय आर्मी को काफ़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ा.

भारत-पाक युद्ध के हीरो

आर्मी के पास कोई रिज़र्व फ़ोर्स नहीं थी. उस वक्त के रक्षा मंत्री यशवंत राव चह्वाण ने अर्जन सिंह से कहा कि 'एयर चीफ़ कुछ करो.' अर्जन सिंह ने कहा कि 'आप हुक्म दो तो मैं कुछ करूं.'
मंत्री ने हुक्म दिया तो अर्जन सिंह ने चालीस मिनट में ही पठानकोट से 12 वैम्पायर लड़ाकू विमानों को छम में हमले के लिए तैयार किया. उन्होंने जो हमला हो रहा था उसको रोक दिया.
फिर 3 सितंबर को हवाई युद्ध शुरू हुआ और 6 सितंबर को जब भारतीय सेना ने वाघा बॉर्डर को पार किया तो फिर अगले चौदह दिनों तक भारी लड़ाई हुई जिसमें भारतीय सेना का अहम रोल था. देखा जाए तो उस वक्त उन्होंने काफ़ी अहम भूमिका निभाई थी.

लॉर्ड माउंटबेटन ने किया था सम्मानित

जब वो रिटायर हुए तब भी वो काफ़ी यंग दिखते थे. देश ने उन्हें सम्मान देने के लिए कई देशों में राजदूत बनाया. वो एक बार दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर भी बने.
अर्जन सिंह कहते थे कि जो जंग उन्होंने लड़ी थी वो दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान था. जिस वक्त जापान ने हमला किया था, वो इंफाल में वायुसेना के नंबर एक स्क्वॉड्रन हरिकेन के विमानों के जत्थे का नेतृत्व कर रहे थे.
उन्होंने स्क्वॉड्रन हरिकेन के साथ 15 महीने तक लड़ाई में हिस्सा लिया और उन्हें वहीं मैदान पर उनके योगदान के लिए डिस्टिंग्विश्ड फ्लाइंग क्रॉस मिला. लॉर्ड माउंटबेटन मैदान में उनसे मिलने पहुंचे और उनकी छाती पर मेडल लगाया.
वो कहते थे कि बाद में मैं मार्शल बन गया, लेकिन मेरे लिए सबसे बेहतरीन पल वही था जब मुझे 1944 में डिस्टिंग्विश्ड फ्लाइंग क्रॉस मिला था.
वो गोल्फ़ खेलना पसंद करते थे. कुछ चार पांच दिन पहले मैं उनसे गोल्फ़ के मैदान में मिला था. हालांकि वो खेलते तो नहीं थे, लेकिन वहां रोज़ आते थे और खिलाड़ियों से मिलते थे.
आर्मी में हम देखते हैं कि दो फ़ील्ड मार्शल थे, एक थे केएम करियप्पा और दूसरे थे सैम मानेकशॉ.
लेकिन एयर फ़ोर्स में एक ही थे, मार्शल अर्जुन सिंह, ये एक बेहद सम्मानजनक पद है.
भारतीय वायुसेना के आधुनिकीकरण का श्रेय भी उनको जाता है. उन्होंने भारतीय वायुसेना को सुपरसोनिक युग में ले गए. उनका ही योगदान है कि आज भारतीय वायुसेना को दुनिया की ताक़तवर वायुसेनाओं में गिना जाता है.

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