वेंकैया चुने गए नए उपराष्ट्रपति, बीजेपी का यह सपना हुआ पूरा

वेंकैया नायडू देश के नए उपराष्ट्रपति होंगे। उपराष्ट्रपति चुनाव में उन्होंने कांग्रेस की अगुआई वाले 18 विपक्षी दलों के संयुक्त उम्मीदवार और राष्ट्रपति महात्मा गांधी के पोते गोपाल कृष्ण गांधी को 272 वोटों से हराया। उन्हें कुल 516 वोट मिले, जबकि यूपीए उम्मीदवार को 244 वोट हासिल हुए। 11 वोट अवैध करार दिए गए। इस तरह ऐसा पहली बार हुआ है कि बीजेपी के नेता देश के 3 बड़े संवैधानिक पदों- राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री पर काबिज होंगे। 1980 में वजूद में आई बीजेपी के लिए यह निश्चित तौर पर एक बड़ी उपलब्धि है। इससे पहले राष्ट्रपति चुनाव में रामनाथ कोविंद ने विपक्ष के उम्मीदवार मीरा कुमार को हराया था। मौजूदा उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी लगातार 2 बार इस पद पर रहें और उनका मौजूदा कार्यकाल 10 अगस्त को समाप्त हो रहा है। नायडू देश के दूसरे सर्वोच्च पद पर पहुंचने वाले 13वें शख्स हैं।
बीजेपी नेता बीजेपी ने संघ परिवार के करीबी वेंकैया नायडू को एनडीए की तरफ से उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया था। शुक्रवार को उपराष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव में 98.21% वोट डाले गए। चुनाव में कुल 785 सांसदों को वोट डालना था लेकिन 771 सांसदों ने ही वोट डाला, 14 सांसदों ने मताधिकार का इस्तेमाल नहीं किया। वोटिंग सुबह 10 बजे शुरू हुई जो शाम 5 बजे तक चली। वोटों की गिनती शाम 6 बजे से शुरू हुई और नतीजों का ऐलान शाम करीब 7 बजे किया गया। गोपालकृष्ण गांधी ने वेंकैया नायडू को जीत की बधाई दी है। उन्होंने अपने प्रदर्शन पर संतोष जताते हुए सभी वोट देने वालों को धन्यवाद कहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी नायडू को उपराष्ट्रपति चुने जाने पर बधाई दी है। गोपालकृष्ण गांधी की हार पर कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि विपक्ष कभी विचारधारा से समझौता नहीं करेगा भले ही हमें हार का सामना करना पड़े। आजाद ने एनडीए के खिलाफ वोट देने वाले सभी सांसदों का आभार जताया। 
नायडू के सभी दलों से अच्छे संबध
नायडू अपनी हाजिरजवाबी के लिए मशहूर हैं। नायडू ने संसदीय मामलों के मंत्री के तौर पर कांग्रेस सहित सभी दलों के साथ अच्छे संबंध बनाए थे। वह गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स (GST) बिल पर विपक्ष का समर्थन मांगने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के घर पर भी गए थे। वह राष्ट्रपति चुनाव के सिलसिले में भी सोनिया से मिले थे। विपक्षी दलों के साथ उनके अच्छे संबंधों के कारण उन्हें राज्यसभा का कामकाज बेहतर तरीके से चलाने में मदद मिलेगी। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि एनडीए को फिलहाल राज्यसभा में बहुमत नहीं है। बता दें कि उपराष्ट्रपति संसद के उच्च सदन राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं। 
दक्षिण भारत में पार्टी का विस्तार
नायडू दक्षिण भारत से हैं और उन्हें उपराष्ट्रपति बनाने को बीजेपी की दक्षिण भारतीय राज्यों में लोकप्रियता बढ़ाने की रणनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है। नायडू ने 2016 के चुनाव के दौरान तमिलनाडु में सक्रियता से प्रचार किया था। वह कर्नाटक और केरल भी गए थे। उन्होंने खासतौर पर तमिलनाडु में केंद्र की योजनाओं को लागू करने के तरीके में काफी दिलचस्पी ली है। नायडू दक्षिण भारत से जुड़े मामलों पर भी अपनी राय रखते रहे हैं। उन्होंने दक्षिण भारत में हिंदी को लागू करने के विवाद में क्षेत्रीय भाषाओं को प्राथमिकता देने का समर्थन किया था, लेकिन इसके साथ ही उन लोगों को चेतावनी दी थी कि राजनीतिक फायदे के लिए हिंदी का विरोध करते हैं।

ABVP से राष्ट्रीय राजनीतिक तक का सफर
नायडू ने क्षमताओं को कई मौकों पर साबित भी किया। आंध्र प्रदेश से आने वाले नायडू ने 1967 में बतौर युवा छात्र नेता एबीवीपी से जुड़े और 1973 में उन्होंने जन संघ जॉइन किया। यहां से उन्होंने राष्ट्रीय अध्यक्ष और फिर केंद्रीय मंत्री बनने तक का सफर तय किया। नायडू जब दिल्ली आए तो एलके आडवाणी की नजर उन पर पड़ी। धीरे-धीरे वह टीम आडवाणी का एक अहम हिस्सा बन गए। नायडू के मीडिया से भी बेहद अच्छे संबंध रहे। पत्रकारों में उनकी अच्छी पैठ है। दिल्ली आने के शुरुआती दिनों में उनकी कोशिश रहती थी कि भले ही मीडिया में पार्टी को लेकर कोई नकारात्मक वक्तव्य ही छपे, मगर कहीं ना कहीं पार्टी चर्चा में जरूर रहनी चाहिए।

नायडू का राजनीतिक करियर

पीएम उम्मीदवारी पर मोदी का किया समर्थन
टीम आडवाणी में सुषमा, जेटली, अनंत कुमार और प्रमोद महाजन जैसे नेताओं के साथ नायडू का भी कद बढ़ता गया और धीरे-धीरे वह राष्ट्रीय राजनीति का हिस्सा बन गए। नायडू ने इस वक्त तक भले ही दो विधानसभा चुनाव जीत लिए थे, मगर उनकी जमीनी स्तर पर पकड़ उतनी मजबूत नहीं थी। एक वक्त तक आडवाणी के विश्वासपात्र रहे नायडू, मोदी की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के समय आडवाणी के विरोधी खेमे में भी दिखाई दिए। मोदी की पीएम पद की दावेदारी के वक्त पार्टी के अंदर उनके समर्थकों में से एक प्रमुख चेहरा वह भी थे।

कई बार बने संकटमोचक
नायडू को सरकार के संकटमोचक के तौर पर भी जाना जाता है। कई बड़े मुद्दों पर उन्होंने संसद में विपक्ष पर मजाकिया अंदाज में तंज कसे। जब विपक्ष सरकार पर हमलावर हुआ, तो कई दफा नायडू ने आगे आकर विपक्ष को अपने तीखे और कभी-कभी मजाकिया लहजे से शांत कराने का काम किया। नायडू के रूप में देश को 10 साल बाद राजनीतिक पृष्ठभूमि का कोई उपराष्ट्रपति मिला है।

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