आईये जानें सृजन घोटाले की एबीसीडी

अगस्त के पहले हफ़्ते में भागलपुर के ज़िलाधिकारी आदेश तितरमारे के हस्ताक्षर वाला एक चेक बैंक ने यह कहकर वापस कर दिया कि पर्याप्त पैसे नहीं हैं. यह चेक एक सरकारी ख़ाते का था.
भागलपुर ज़िलाधिकारी के लिए यह हैरान करने वाली बात थी क्योंकि उनको जानकारी थी कि सरकारी ख़ाते में पर्याप्त पैसे हैं. इसके बाद उन्होंने जांच के लिए एक कमेटी बनाई.
कमेटी की जांच में यह बात सही पाई गई कि इंडियन बैंक और बैंक ऑफ़ बड़ौदा स्थित सरकारी ख़ातों में पैसे नहीं हैं. इसके बाद उन्होंने इसकी जानकारी राज्य सरकार को दी. इस तरह से जिस घोटाले की परतें खुलनी शुरु हुईं, वह आज 'सृजन घोटाले' के नाम से ज़बरदस्त चर्चा में है.
इस घोटाले का नाम 'सृजन घोटाला' इस कारण पड़ा क्योंकि कई सरकारी विभागों की रकम सीधे विभागीय ख़ातों में न जाकर या वहां से निकालकर 'सृजन महिला विकास सहयोग समिति' नाम के एनजीओ के छह ख़ातों में ट्रांसफ़र कर दी जाती थी.
और, फिर इस एनजीओ के कर्ता-धर्ता जिला प्रशासन और बैंक अधिकारियों की मिलीभगत से सरकारी पैसे की हेरा-फेरी करते थे.
मामला सामने आने के बाद नौ अगस्त को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आदेश पर बिहार पुलिस के आर्थिक अपराध इकाई का विशेष जांच दल भागलपुर पहुंचा. इसका नेतृत्व आईजी रैंक के पुलिस अफ़सर जे.एस. गंगवार कर रहे हैं.
इस टीम को तीन दिन तो यह समझने में लग गए कि सरकारी ख़ाते का पैसा एक एनजीओ के ख़ाते में कैसे गया.

अनोखा तरीका

इस घोटाले को अंजाम देने का ढंग अपने आप में अनोखा है. पुलिस मुख्यालय में अपर पुलिस महानिदेशक एस.के. सिंहल बताते हैं, 'फर्ज़ी सॉफ़्टवेयर बनाकर पासबुक को अपडेट किया जाता था. उसी सॉफ़्टवेयर से बैंक स्टेटमेंट निकाला जाता था.
यह फ़र्ज़ी स्टेटमेंट बिल्कुल वैसा ही होता था, जैसा किसी सरकारी विभाग के इस्तेमाल और खर्च का होता है. दिलचस्प बात यह है कि घोटाले से जुड़े लोग इसी फ़र्ज़ी सॉफ़्टवेयर के ज़रिए इस राशि का ऑडिट भी करवा देते थे.'
सिंघल आगे बताते हैं कि घोटालेबाज़ों ने एक बात यह सुनिश्चित कर रखी थी कि किसी लाभार्थी को अगर कोई सरकारी चेक दिया जा रहा है तो उस चेक का भुगतान ज़रूर हो जाए.
वरिष्ठ पत्रकार रमाशंकर मिश्र इस घोटाले के सामने आने के बाद इस पर करीबी नज़र रख रहे हैं. वह बताते हैं, "यह अपने आप में एक नई तरह का घोटाला है. सरकारी राशि का गबन करना अलग बात है.
लेकिन संगठित तरीके से सरकारी रकम एक एनजीओ के ख़ाते में भेजी गई और फिर इस पैसे का इस्तेमाल व्यक्तिगत लाभ के लिए किया गया."

अब तक की कार्रवाई

इस मामले में हुई अब तक की कार्रवाई के बारे में एस.के. सिंहल ने बीबीसी को बताया, "जांच में यह बात सामने आई है कि इस घोटाले से 750 करोड़ से अधिक की रकम जुड़ी हुई है."
"अब तक इस सिलसिले में दस एफ़आईआर हुई हैं, जिनमें से नौ एफ़आईआर भागलपुर में और एक सहरसा ज़िले में दर्ज हुई है."
"अब तक इस मामले में 18 लोगों की गिरफ़्तारी हुई है और उनके ख़ातों से लेन-देन पर रोक लगा दी गई है."
एस.के. सिंहल के मुताबिक बिहार पुलिस ने लुक आउट नोटिस भी जारी किया गया है ताकि एनजीओ सृजन की पूर्व संचालिका मनोरमा देवी के बेटे अमित कुमार और बहू प्रिया कुमार देश छोड़ कर न भाग सकें. मनोरमा देवी की इस साल फ़रवरी में मौत हो गई थी.

सीबीआई जांच की सिफ़ारिश

जैसे-जैसे घोटाले का दायरा बढ़ता गया, बिहार के विपक्षी दलों का सरकार पर हमला भी बढ़ता गया. वे इस मामले की सीबीआई जांच की मांग भी करने लगे. इन मांगों के बीच राज्य सरकार ने 18 अगस्त को इसकी सीबीआई जांच कराने का फ़ैसला ले लिया.
इसके अगले ही दिन बिहार के गृह विभाग ने संबंधित कागज़ातों के साथ यह अनुशंसा केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेज भी दी.
पत्रकार रमाशंकर कहते हैं कि सरकार के सीबीआई जांच कराने के फ़ैसले से इस मुद्दे पर विपक्ष के हमले की धार थोड़ी कुंद ज़रूर होगी, लेकिन उनका यह भी मानना है कि यह घोटाला नीतीश कुमार की सुशासन वाली छवि पर एक दाग़ है.
वह कहते हैं, 'यह प्रशासनिक चूक वर्षों तक चलती रही. हर विभागीय ख़ाते का ऑडिट होता है. उस ऑडिट में भी यह घोटाला पकड़ में नहीं आया, यह बात बहुत हैरान करने वाली है और इससे सुशासन के दावों पर सवालिया निशान भी लगता है.'
यह घोटाला अब फैलकर कई ज़िलों तक पहुंच गया है. बिहार पुलिस के मुताबिक़ यह कई राज्यों तक भी फैला हो सकता है. साथ ही घोटाले की राशि बढ़ने की भी आशंका है. अब तक जांच में यह बात सामने आई है कि यह घोटाला 2004 से ही चल रहा था.
इस घोटाले में मुख्य रूप से भू-अर्जन विभाग की राशि के साथ हेरा-फेरी किए जाने की बात सामने आई है. साथ ही सहकारिता विभाग, भवन निर्माण विभाग, ज़िलाधिकारी के नजारत समेत करीब दस विभागों की राशि भी इससे जुड़ी है.

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