अहमद पटेल: इंदिरा-संजय विरोधी लहर में भी पहुंचे थे लोक सभा, मोदी-शाह लहर के बावजूद पहुंचे राज्य सभा

आपातकाल के बाद जब 1977 में छठवां आम चुनाव हुआ तो आजादी के बाद से ही देश की सत्ता पर काबिज सत्ताधारी कांग्रेस की मिट्टी पलीद हो गई। कांग्रेस की शर्मनाक हार के लिए इमरजेंसी के दौरान की गई ज्यादतियों को जिम्मेदार माना गया है। कांग्रेस की हार इसलिए भी ज्यादा तकलीफेदह थी क्योंकि खुद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके तानाशाह बेटे संजय गांधी चुनाव हार गए थे। लेकिन उसी चुनाव में एक ऐसा नेता पहली बार लोक सभा पहुंचा जो 40 साल बाद राज्य सभा चुनाव में जनता पार्टी से निकली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के दो शीर्ष नेताओं नरेंद्र मोदी और अमित शाह से दो-दो हाथ करने वाला था। जीत इस बार भी उसी की हुई। इंदिरा विरोधी लहर में लोक सभा पहुंचने वाले अहमद पटेल मोदी-शाह लहर में पांचवी बार राज्य सभा पहुंचने में कामयाब रहे।
1977 के आम चुनाव में जनता पार्टी गठबंधन को 345 सीटों पर जीत मिली थी। कांग्रेस को 189 सीटों पर जिनमें से 153 सीटें कांग्रेस की थीं। कांग्रेस गठबंधन को पिछले चुनाव के मुकाबले 217 सीटें खोनी पड़ी थीं। वहीं कांग्रेस को पिछली बार से 197 सीटें कम मिली थीं। 19 सीटें अन्य पार्टियों और निर्दलीय उम्मीदवों के खाते में गए थीं। गुजरात की 26 विधान सभा सीटों में से कांग्रेस को महज छह पर जीत मिली थी। 20 सीटें जनता पार्टी को मिली थीं। इन छह सांसदों में भरूच सीट से जीतने वाले अहमद पटेल भी थे। 21 अगस्त 1949 को अंकलेश्वर (वर्तमान गुजरात) में जन्मे अहमद पटेल की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई स्थानीय स्कूलों में हुई। दक्षिण गुजरात यूनिवर्सिटी से उन्होंने बीएससी की। स्कूल की क्रिकेट टीम में वो बतौर बल्लेबाज खेला करते थे।
पटेल ने राजनीतिक जीवन की शुरुआत नगरपालिका चुनाव से की थी। उन्होंने पहला बड़ा चुनाव अपना ताल्लुका पंचायत के सभापति का जीता। स्थानीय कांग्रेस से जुड़े अहमद पटेल अपने लगन और मेहनत के दम पर राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष पद तक पहुंच गए। गुजरात की भरूच सीट से अहमद पटेल ने लगातार तीन बार (1977,1980 और 1984 में) जीत हासिल की। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब कांग्रेस सरकार में उनके बेटे राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अहमद पटेल को अपना संसदीय सचिव बनाया। अहमद पटेल, दिग्विजय सिंह, तरुण गोगोई, अशोक गहलोत इत्यादि नेताओं को राजीव गांधी ने खुद चुना था और पुराने कांग्रेसियों के बरक्स इन युवा तुर्कों पर उन्होंने ज्यादा भरोसा दिखाया।
साल 1991 में राजीव की हत्या के बाद भी अहमद पटेल गांधी परिवार के करीबी बने रहे। 1993 में वो पहली बार राज्य सभा सांसद बने। उसके बाद वो लगातार राज्य सभा में रहे। इस साल पटेल पांचवी बार राज्य सभा के लिए चुने गए। जब 1997 में राजीव गांधी की विधवा सोनिया गांधी ने सक्रिय राजनीति में कदम रखा तो उनके अहमद पटेल उन चुनिंदा कांग्रेसियों में थे जिन्हें सोनिया का भरोसा हासिल था। ये भरोसा आज दो दशक बाद तक बरकरार है। अहमद पटेल सोनिया के राजनीतिक सचिव हैं। वो एकमात्र कांग्रेसी हैं जिसके पास सोनिया के आधिकारिक आवास 10 जनपथ में एक निजी कार्यालय है।
कांग्रेस 2004 से 2014 तक लगातार 10 सालों तक सत्ता में रही लेकिन अहमद पटेल ने कोई पद नहीं लिया। पटेल को मीडिया की सुर्खियों में रहना पसंद नहीं है। वो चर्चा में आने से बचते हैं। राजनीतिक जानकारों की मानें तो उन्हें बड़बोलापन पसंद नहीं। वो कांग्रेस में चाहे जितने भी ताकतवर हों सार्वजनिक तौर पर सभी से बहुत विनम्रता से पेश आते हैं। पटेल पहली बार बड़े राजनीतिक विवाद में तब घिरे जब जुलाई 2016 में संसद में अगस्तावेस्टलैंड हेलीकॉप्टर में दलाली के मामले में उनका नाम उछाला गया। इन हेलीकॉप्टर की खरीदारी में बिचौलिए की भूमिका निभाने वाले गुइडो हाशके की डायरी में किसी “एपी” को पैसे देने की बात लिखी थी। बीजेपी नेता सुब्रामण्यम स्वामी ने आरोप लगाया कि “एपी” अहमद पटेल के लिए लिखा गया है। हालांकि पटेल ने सभी आरोपों को पूरी तरह बेबुनियाद बताया। लिज़ मैथ्यू को दिए एक इंटव्यू में पटेल ने बताया था कि उन्हें हिन्दी फिल्मों के गीत सुनना पसंद है लेकिन वो इसके लिए केवल रविवार को समय निकाल पाते हैं। कॉलेज में क्रिकेटर रहे पटेल आज भारतीय क्रिकेट टीम के सभी खिलाड़ियों के नाम भी नहीं जानते।

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