फिल्म अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने भीड़ द्वारा पीट-पीटकर लोगों की हत्या करने के ख़िलाफ़ एक ऑनलाइन याचिका शुरू की है.

स्वरा कहती हैं, ‘मैं भारतीय फिल्म उद्योग में अभिनेत्री हूं लेकिन भारत का जागरूक नागरिक होने के तौर पर हम इस तरह की हत्याओं के घटित होने की अनुमति नहीं दे सकते. मैं हज़ारों युवा भारतीयों के साथ देश के विभिन्न शहरों में हुई ऐसी घटनाओं के ख़िलाफ़ प्रदर्शन में खड़ी हूं.’

स्वरा ने देशभर में बढ़ती हिंसात्मक घटनाओं और असहिष्णुता के ख़िलाफ़ ये याचिका शुरू की है जिसमें उनका साथ कई दूसरे सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी दिया है.
इस याचिका में स्वरा ने ‘मॉब लिंचिंग’ यानी भीड़ द्वारा किसी की पीट-पीट कर हत्या कर दिए जाने की पिछले दिनों हुई तमाम घटनाओं को एक-एक करके लोगों के सामने रखा है.
स्वरा ने याचिका की शुरुआत हाल ही में हुए हरियाणा के बल्लभगढ़ में ट्रेन की सीट को लेकर हुई ज़ुनैद की हत्या के मामले से की.
याचिका में स्वरा कहती हैं, ‘एक 16 वर्षीय लड़के ज़ुनैद ने रेलवे प्लेटफॉर्म पर अपने भाई की गोद में दम तोड़ दिया. ज़ुनैद की हत्या भीड़ ने चाकू मारकर की थी. भीड़ में शामिल उनके हत्यारों ने उन्हें ‘गोमांस खाने वाला’ और ‘देशद्रोही’ भी कहा था.’
इसके बाद स्वरा ने देश के बारे में अपने विचारों को इस प्रकार से रखा है…
जब भी मैं अख़बार में इस तरह की ख़बरें सुनती हूं, मेरा सिर शर्म से झुक जाता है. मैं अपने भारतीय होने पर हमेशा गर्व करती हूं.
मुझे लगता है कि हमारे देश की ताकत इसकी विविधता और विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों और भाषाओं की स्वीकृति में निहित है. लेकिन, आजकल अख़बारों की सुर्ख़ियों को पढ़कर मुझे यह लगने लगा है कि हमारे देश का सामाजिक ताना-बाना और हमारी राष्ट्रीय पहचान का आधार ख़तरे में है.
देखा जाए तो गोरक्षा के नाम पर होने वाली हिंसा के मामले में साल 2017 धीरे-धीरे सबसे ख़राब वर्ष में तब्दील होता जा रहा है. 2017 के पहले छह महीनों में भीड़ द्वारा की जाने वाली हिंसा की ऐसी 20 घटनाएं सामने आ चुकी हैं.
मैं हज़ारों युवा भारतीयों के साथ देश के विभिन्न शहरों में हुई ऐसी घटनाओं के ख़िलाफ़ प्रदर्शन में खड़ी हूं. बीते दिनों हम सबने ‘नॉट इन माई नेम’ नाम के एक विरोध प्रदर्शन में भाग लिया था, जो विश्व के 20 शहरों में आयोजित किया गया था.
इसके ठीक अगले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोरक्षा के नाम पर की गई हत्या की घटनाओं की निंदा की थी लेकिन उसके बाद भी इन घटनाओं में कोई कमी नहीं आई है.
भीड़ द्वारा की गई हिंसा की ऐसी घटनाएं कई बार हत्या, उत्पीड़न, हमले और यहां तक कि सामूहिक बलात्कार के रूप लेती हैं!
कई तरह की अफवाह उड़ाकर भारत में रह रहे अफ्रीकी नागरिकों पर अक्सर हमला किया जाता है. साल 2014 में अरुणाचल प्रदेश से दिल्ली पढ़ने आए नीडो तानियाम की ऐसे ही पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी.
मुसलमान और दलित, जो परंपरागत तौर पर दूध के कारोबार, पशु व्यापार या जानवरों के शवों का निस्तारण करने जैसे कामों से जुड़े वे आजकल गोरक्षकों के निशाने पर हैं.
ये समझने वाली बात है कि भीड़ की हिंसा का शिकार कोई एक समूह नहीं होता बल्कि कभी भी कोई भी हो सकता है. पश्चिम बंगाल में आजकल कक्षा 11 के एक छात्र द्वारा लिखे हुए पोस्ट पर लोग भड़के हुए हैं.
कुछ महीने पहले दिल्ली में एक ई-रिक्शाचालक की भीड़ ने पीट-पीट कर हत्या कर दी सिर्फ़ इसलिए क्योंकि वह एक लड़के को सड़क पर पेशाब करने से मना कर रहे थे. रवींद्र प्रधानमंत्री मोदी द्वारा चलाए गए स्वच्छ भारत अभियान के मुरीद थे.
मानसिक रूप से कमज़ोर और ट्रांसजेंडर अक्सर भीड़ के ग़ुस्से और हिंसा का शिकार हो जाते हैं. पश्चिम बंगाल में मानसिक रूप से कमज़ोर 42 साल की एक महिला लोगों के शक, अफ़वाह और ग़ुस्से का शिकार बनीं. लोगों ने यह अफ़वाह उड़ाकर कि वह बच्चों को चुराती हैं उन्हें पीट-पीट कर मार डाला.
जम्मू कश्मीर में एक पुलिस अधिकारी को भी भीड़ ने अपनी हिंसा का शिकार बनाया. एक ओर भीड़ एक पुलिस वाले को मौत के घाट उतार देती हैं वहीं दूसरी ओर बल्लभगढ़ में मारे गए ज़ुनैद के मामले में पुलिस कहती है कि वह उन्हें भीड़ से बचाने में असमर्थ रही.
ये दोनों घटनाएं इशारा कर रही हैं कि किस हद तक हमारा समाज अराजक स्थिति में पहुंच चुका है जहां कानून और व्यवस्था ख़त्म होती जा रही है. कोई भी सभ्य समाज भीड़ द्वारा शासित नहीं किया जा सकता.
मॉब लिंचिंग या भीड़ द्वारा पीट-पीट कर हत्या कर देने जैसी कोई भी बात कही भी संविधान में नहीं लिखी गई है. इस मुद्दे पर कोई भी क़ानून नहीं लागू किया गया है. मेरी सांसदों से ये अपील है कि इस प्रवृति के ख़िलाफ़ सख़्त से सख़्त क़ानून बनाया जाए.
याचिका में स्वरा ने कुछ मांगों को रखा जो इस प्रकार हैं…
1. संसद के आगामी सत्र में मानव सुरक्षा कानून (मासुका) को लागू किया जाए.
  • मॉब लिंचिंग या पीट-पीट कर हत्या कर देने के कृत्य को ग़ैर-ज़मानती अपराध घोषित किया जाए.
  • संस्थागत उत्तरदायित्व बनाना- ऐसी घटनाओं पर स्थानीय पुलिस अधिकारियों को निलंबित किया जाए.
  • अपराधियों के लिए सख़्त से सख़्त सज़ा जिसमें आजीवन कारावास भी शामिल हो.
  • एक स्वतंत्र न्यायिक जांच करवाने की व्यवस्था की जाए.
  • ऐसी घटनाओं में बच गए लोगों और उनके परिवारों को राहत और पुनर्वास (वित्तीय, मनोवैज्ञानिक) प्रदान किया जाए.
  • किसी भी व्यक्ति या समुदाय को निशाना बनाने वाली अफ़वाहों पर रोक लगाई जाए.
  • ऐसी घटनाओं का समयबद्ध मुक़दमा चलाया जाए.
2. एनसीआरबी (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो) को भीड़ द्वारा पीट-पीट कर हत्या किए जाने वाले अपराधों की जानकारी की सूची बनाकर रखने की ज़िम्मेदारी दी जाए.
3. भीड़ द्वारा हिंसा की ऐसी घटनाओं की रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए एक राष्ट्रीय हेल्पलाइन शुरू की जाए.
4. गोरक्षक समूहों को बैन किया जाए.
5. पुलिस की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए पुलिस सुधार किया जाए. साथ ही व्यक्तियों के अधिकारों से जुड़े कानूनों को लेकर लोगों में जागरूकता और संवेदनशीलता फैलाई जाए.
स्वरा याचिका के आख़िर में लिखती हैं, ‘अब समय आ चुका है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी कही हुई बातों को पूरा कर दिखाएं. इस देश के नौजवानों ने पहले प्रधानमंत्री को चुना है जो आज़ादी के बाद पैदा हुआ है. अब हम चाहते हैं कि प्रधानमंत्री हमारी सामाजिक स्वतंत्रता को संरक्षित करें.’

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