चुप्पी के कारण टूटने लगी है मोदी की छवि

राजनीति संदेश देने की कला है लेकिन जब कलाकारी चरम पर पहुंच जाती है तब यह सिलसिला उलट जाता है. सचेत तरीकों से दिए गए संदेश ज़मीनी हक़ीकत से टकरा कर नए संदेश बनाने लगते हैं.

ऐसे में संदेशों की खेती करने वाले राजनेता, छवि प्रबंधन के धुरंधर और तकनीक के तुर्क सभी हतप्रभ रह जाते हैं.
मध्य प्रदेश के मंदसौर में फसल के वाजिब दाम और क़र्ज़माफ़ी के लिए आंदोलन करने वाले छह किसानों की पुलिस की गोली से मौतों के बाद यही हो रहा है.
ऊपर से यूपी का किला जीत कर मदमस्त हुए सत्ताधारी भाजपा के बड़े नेता एक दूसरे से हिसाब बराबर करने की चालों के साथ ग़लतियों पर ग़लतियां कर रहे हैं जो कई राज्यों में किसानों के सड़क पर दिखाई दे रहे ग़ुस्से को और भड़काने का काम करेंगी.
पार्टी और सरकार में प्रधानमंत्री मोदी के अलावा संदेश देने वाला और कोई नेता नहीं बचा है.

हर जगह मोदी का चेहरा

विराट आक्रामक उपस्थिति से लदे तीन सालों में जनता उनके इशारे समझने की इतनी अभ्यस्त हो चली है कि स्थानीय निकाय जैसे छोटे चुनावों में भाजपा को वोट देने से लेकर अपने पड़ोस में रखने तक के लिए प्रेरित करने का काम बिना उनके चेहरे के पूरा नहीं होता.
मंदसौर गोलीकांड से ठीक पहले मोदी बर्लिन में अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा से मिले जिससे संदेश गया कि वे सिर्फ़ एक सूखे राजनेता ही नहीं अपने देश के युवाओं से संवाद करने वाले सुरूचि संपन्न कलावंत भी हैं.
लेकिन उन्होंने जब एक भाजपा शासित राज्य में छह किसानों की मौत के बाद लंबी चुप्पी खींच ली तब किसानों में यह संदेश गया कि उनकी चिंता का केंद्र कहां है!

किसानों की समस्याओं पर चुप्पी

इससे पहले भी दिल्ली में तमिलनाडु के अकाल पीड़ित किसानों ने अपनी बदहाली दिखाने के बहुतेरे तरीकों से प्रदर्शन किया लेकिन उनमें से किसी को पीएमओ से बुलावा नहीं आया.
पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी ने इलीट सोनिया गांधी और शहज़ादे राहुल के मुक़ाबले, स्टेशन पर चाय बेचने के लिए मजबूर किए गए गरीब किसान के बेटे की छवि बनाने के लिए काफी भावनात्मक और आर्थिक निवेश किया था.
इससे बनी विश्वसनीयता के बूते उन्होंने 'स्वामीनाथन आयोग' की सिफारिशें लागू करने और फसल की लागत का ड्योढ़ा दाम दिलाने का वादा किया था लेकिन अब उनके कृषि मंत्री ने कह रहे हैं कि उनकी बातों का ग़लत अर्थ लगा लिया गया.

मंत्री के बेतुके बयान

यही कृषि मंत्री राज्यसभा में किसानों की आत्महत्या का कारण दहेज, प्रेम संबंध और नामर्दी बता चुके हैं.
इस बीच सात लाख करोड़ रुपए का क़र्ज़ दबा जाने वाले डिफॉल्टर उद्योगपतियों के नाम बताने से सरकार भाग रही है लेकिन पांच-दस हजार के क़र्ज़दार किसानों की कुर्की पहले की तरह जारी है.
कृषि उपज के दाम बिचौलियों की मनमानी पर निर्भर होने के कारण किसान फल, दूध और सब्जियां सड़क पर फेंक रहे हैं.
मोदी के तीन साल पूरे होने पर चहुंओर "मोदीफेस्ट" मनाया जा रहा है जिससे संदेश जा रहा है कि यह सरकार भी कांग्रेसियों की तरह प्रचार से बने ख़ुशफ़हमी के स्वर्ग में जी रही है.

खुल गई है कलई

पिछली सरकार में कांग्रेस के मंत्री भी महंगाई की बात करने पर उसे विरोधियों का दुष्प्रचार बताते हुए कोसने लगते थे और उदाहरण के लिए संसद की कैंटीन में मिलने वाले सस्ते खाने का हवाला देते थे.
मंदसौर गोलीकांड ने सच्चाई छिपा पाने में नाकाम भाजपा और संघ के बीच के प्रपंच की भी कलई खोल दी है. किसानों के आंदोलन में आरएसएस से जुड़े किसान नेताओं का योगदान है लेकिन वे 'घर का भेदी' करार दिए जाने के डर से बहुत मद्धिम सुर में बोल रहे हैं.
अंदरूनी राजनीति के चलते मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को इस मुसीबत से निपटने के लिए अकेला छोड़ दिया गया है जिससे उनका पुराना संतुलन बिगड़ गया है.

सबकुछ अंगभीर हो गया

पहले उन्होंने कहा कि यह असामाजिक तत्वों का आंदोलन था फिर परिणामों से डरकर हर मृतक के परिजनों को एक करोड़ रुपए (अब तक का रिकॉर्ड सर्वाधिक मुआवजा) दिया. अब जब वे शांति के लिए गांधीवादी तरीके से उपवास कर रहे हैं तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का बयान आ गया है - गांधी बहुत चतुर बनिया था, इससे सब कुछ अगंभीर हो गया है.
अहंकार की कमानी वाले जातिवादी चश्मे से गांधी को देखने से संदेश जा रहा है कि भाजपा के नेता किसी चीज की कद्र नहीं करते, वे भावनाओं, व्यक्तित्वों, प्रतीकों का मौका ताक कर इस्तेमाल करते हैं और भूल जाते हैं. एक दिन उनकी असली राय भी जबान पर आ ही जाती है.

टूट रही है छवि

सच तो यह है कि जैसे-जैसे प्रचार और हक़ीकत के अंतर्विरोध बढ़ रहे हैं, मोदी की निर्णायक मसलों पर चुप्पी बढ़ती जा रही है. हर चुप्पी के दौरान उनकी 'कुछ कर दिखाने वाले नेता' की छवि टूट रही है.
महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा, तमिलनाडु, यूपी के किसानों के बढ़ते असंतोष के मद्देनजर आसार यही हैं कि ऐसे संदेशों की बाढ़ आने वाली है जिन्हें सुनना भाजपा नेताओं को बहुत नागवार गुजरने वाला है क्योंकि पिछले तीन साल वास्तविक मुद्दों को हल करने से बचने के लिए गाय, सेना, उग्र हिंदुत्व, भारतमाता जैसे प्रतीकात्मक मुद्दों की राजनीति की गई है.

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