मुलायम सिंह ने 6 साल के लिए सीएम अखिलेश को पार्टी से निकाला

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने पार्टी में मचे घमासान के बीच, शुक्रवार शाम उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव को 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया.


इस घटनाक्रम की ख़ास बातें

  • कथित अनुशासनिक कार्रवाई के तहत समाजवादी पार्टी से निकाले गए अखिलेश और रामगोपाल यादव.
  • आगामी यूपी चुनाव को लेकर सीएम अखिलेश यादव ने अपने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की थी, जिससे मुलायम सिंह यादव नाराज़ थे.
  • मुलायम सिंह के इस फैसले के ख़िलाफ सड़कों पर उतरे अखिलेश यादव के समर्थक.
  • रामगोपाल ने मुलायम के फैसले को बताया असंवैधानिक, अखिलेश की प्रतिक्रिया का इंतजार.

मुलायम सिंह को घेरते हुए रामगोपाल यादव ने कहा, ''आधे घंटे के अंदर हमें पार्टी से निकाल दिया. बिना जवाब सुने और दूसरा पक्ष लिए. किसी के खिलाफ़ ऐसे कार्रवाई नहीं की जाती. नोटिस दिया और बिना जवाब लिए ही पार्टी से निकाल दिया. न्यायिक नियम के मुताबिक़ बिना दूसरे पक्ष को सुने पार्टी से नहीं निकाला जा सकता है."
रामगोपाल यादव ने मुलायम सिंह पर आरोप लगाते हुए कहा, "इस पार्टी में शीर्ष स्तर से लगातार असंवैधानिक काम काम हो रहे हैं. यदि पार्टी प्रमुख असंवैधानिक काम करे, तो सम्मेलन कौन बुलाएगा? संसदीय बोर्ड की एक भी बैठक नहीं हुई और सारे पार्टी उम्मीवारों की सूची तय कर दी गई. हमने आपातकालीन मीटिंग बुलाई थी. नेताजी को पार्टी का संविधान पता नहीं है. हमारा सम्मेलन पूरी तरह से वैध था."

मुलायम ने पार्टी कार्यकर्ताओं को भी दी चेतावनी

पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव के साथ लखनऊ में प्रेस कांफ्रेस कर मुलायम सिंह ने दोनों के निष्कासन का ऐलान किया. उन्होंने कहा,
  • किसी को भी पार्टी का सम्मेलन बुलाने का हक़ नहीं है.
  • रामगोपाल ने मुझे बिना बताए बुलाया पार्टी सम्मेलन, जो कि असंवैधानिक है.
  • सिर्फ पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को ही पार्टी सम्मेलन बुलाने का हक़ है.
  • पार्टी सम्मेलन बुलाकर रामगोपाल ने मुझपर अब सीधा हमला किया है.
  • जो पार्टी सदस्य और कार्यकर्ता रामगोपाल के बुलाए सम्मेलन में शामिल होगा, उसे भी पार्टी से निकाला जाएगा.
  • यूपी के मुख्यमंत्री गुटबाजी कर रहे थे. यह उनकी सज़ा है.

हंगामा शुक्रवार दोपहर से शुरू हुआ

इससे पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव की ओर से अखिलेश यादव और रामगोपाल को कारण बताओ नोटिस भेजा गया था. इसमें सवाल किया गया था कि विधानसभा चुनाव 2017 के लिए प्रत्याशियों की समानांतर सूची जारी करने पर अखिलेश के ख़िलाफ अनुशासनिक कार्यवाही क्यों नहीं की जाए?
हालांकि शुक्रवार दोपहर में ही पत्रकारों से बातचीत करते हुए रामगोपाल ने संकेत दिया था कि अब पार्टी में किसी तरह से भी सुलह की संभावना नहीं है.
इस बीच रामगोपाल यादव ने भी आगामी एक जनवरी को पार्टी का राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाते हुए कह दिया कि पार्टी के शुभचिंतक इस सम्मेलन में जरूर शामिल हों, ताकि पार्टी के हालात पर चर्चा हो सके.
दरअसल, गुरुवार देर रात मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की ओर से पेश की गई समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों की कथित समानांतर सूची के बाद पार्टी में सीधे तौर पर दो फाड़ होने की संभावना जताई गई थी.
मुलायम-शिवपाल खेमे ने अखिलेश के इस क़दम की तत्काल प्रतिक्रिया देते हुए देर रात ही 68 और उम्मीदवारों के नाम जारी किए थे.
इस सूची में भी पहले की तरह अखिलेश के कथित क़रीबियों को जगह नहीं दी गई थी.

‘गार्जियन’ रहे शिवपाल से अखिलेश की क्यों ठनी

हाल ही में अपनी स्थापना की स्वर्ण जयंती मनाने वाली समाजवादी पार्टी अगर आज टूटी है (सिर्फ औपचारिकता ही बाक़ी है) तो इसकी वजह अखिलेश और शिवपाल का झगड़ा ही है.
आख़िर, अखिलेश के अपने चाचा से रिश्ते क्यों और कब से बिगड़े? अपने जिस भाई को मुलायम सबसे ज्यादा मानते हैं, उसी चाचा शिवपाल से अखिलेश की कबसे ठनने लगी?
अखिलेश के बचपन के पन्ने बताते हैं जब पिता मुलायम राजनीति में घनघोर व्यस्त रहा करते थे तो अखिलेश की घर और स्कूल की पढ़ाई की देख-रेख शिवपाल और उनकी पत्नी सरला ही करती थीं.
राजनीति के बीहड़ों में लड़ते हुए जब मुलायम सिंह की जान तक को ख़तरा था तो उन्होंने तब अपने एक मात्र पुत्र अखिलेश को सुरक्षा कारणों से स्कूल से निकाल कर घर बैठा दिया था.
साल 1980 से 1982 के उन दो सालों में चाची सरला उसे घर पर पढ़ाया करती थीं. अखिलेश की मां बीमार रहती थीं.
सन 1983 में जब अखिलेश को धौलपुर मिलिट्री स्कूल में भर्ती कराया गया तो चाचा शिवपाल ही उन्हें इटावा से वहां लेकर गए थे. भर्ती की सारी औपचारिकताएं शिवपाल ने पूरी कीं क्योंकि मुलायम को फ़ुर्सत नहीं होती थी.
स्कूल में अखिलेश के गार्जियन शिवपाल और सरला यादव थे. चाचा-चाची ही अखिलेश से मिलने धौलपुर जाया करते थे.
बीते सितम्बर में जब चाचा-भतीजे का झगड़ा सड़क तक आया तब मुलायम ने कहा भी था कि अखिलेश को शिवपाल ने ही पाला है. साथ में उन्होंने यह भी जोड़ा था कि समाजवादी पार्टी बनाने में शिवपाल का बहुत बड़ा योगदान है. तब मुलायम यही बताने की कोशिश कर रहे थे कि अखिलेश और शिवपाल के रिश्ते कितने पुराने और मज़बूत हैं और यह भी कि शिवपाल पार्टी के लिए कितने ज़रूरी हैं.
अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद मुलायम न चाचा-भतीजे के रिश्ते बचा सके, न पार्टी. मुलायम के लिए यह बहुत कष्टकारी समय होगा.
जब शिवपाल समाजवादी पार्टी को खड़ा करने में मुलायम के कंधे से कंधा मिला कर चल रहे थे तब मैसूर के इंजीनियरिंग कॉलेज में अखिलेश की दिलचस्पी पढ़ाई के अलावा सिर्फ खेल और कुछ फ़िल्मों में थी.
समाजवादी पार्टी के गठन की ख़बर उन्होंने अख़बारों में देखी थी. राजनीति में उनकी कोई दिलचस्पी न थी. मैसूर से इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन करके वे पोस्ट ग्रेजुएशन करने आस्ट्रेलिया चले गए.
पिता का भी कोई इरादा अखिलेश को राजनीति में लाने का न था. समाजवादी नेता के तौर पर में वे राजनीति में वंशवाद के सख्त ख़िलाफ़ थे.
अखिलेश पढ़ाई पूरी करके आस्ट्रेलिया से लौटे और साल 1999 में "गर्लफ्रेंड' डिम्पल से उनकी शादी कर दी गई. वे हनीमून के लिए गए ही थे कि पिता मुलायम ने फ़ोन करके बताया कि तुम्हें चुनाव लड़ना है. यह बिल्कुल अचानक हुआ और पिता की खाली की गई कन्नौज सीट से चुनाव जीत कर वे लोक सभा पहुंच गए.
उसी के बाद अखिलेश ने राजनीति और समाजवादी पार्टी की गतिविधियों में दिलचस्पी लेना शुरू किया.
वरिष्ठ पत्रकार सुनीत ऐरन ने अखिलेश यादव पर लिखी अपनी पुस्तक में एक जगह अखिलेश को यह कहते उद्धृत किया है, "मैं राजनीतिक पिता का बेटा न होता तो आज फौजी होता."
शिवपाल तब तक समाजवादी पार्टी में बहुत प्रभावशाली हो चुके थे. मुलायम अपने इस सबसे छोटे भाई पर बहुत भरोसा करते रहे. उन्हें अघोषित रूप से अपना वारिस मानते रहे. अखिलेश चाचा शिवपाल का बहुत सम्मान करते थे. अंदरखाने भी किसी खटास के लक्षण नहीं दिखते थे.
साल 2009 के लोक सभा चुनाव में सपा के ख़राब प्रदर्शन के बाद अखिलेश ने समाजवादी पार्टी में ज्यादा रुचि लेनी शुरू की. पार्टी की छवि बदलने की छोटी-छोटी कोशिशें उन्होंने करनी चाहीं. तब शिवपाल यादव पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे.
अपराधी पृष्ठभूमि के लोगों को राजनीति में प्रश्रय देने और ख़राब क़ानून व्यवस्था के लिए समाजवादी पार्टी की सरकार की हमेशा आलोचना होती रही है. अखिलेश ने इस छवि से निज़ात पानी चाही.
राजनीति में बहुत अनुभवी नहीं होने के बावजूद एक जुनून उनमें था. मुलायम सिंह ने जो भी सोचा हो, उसी साल (2009 में) पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का पद शिवपाल से लेकर अखिलेश को दे दिया.
अखिलेश पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में ख़ूब सक्रिय हुए. उन्होंने अपनी युवा टीम खड़ी की और सपा का रूपांतरण शुरू किया. शिवपाल ने कोई आपत्ति या नाराज़गी तब व्यक्त नहीं की लेकिन इसे अखिलेश के साथ उनके रिश्तों में खटास पैदा होने की शुरुआत मान सकते हैं.
अखिलेश लगातार सक्रिय और मजबूत होते गए. अमर सिंह को भी अनेक कारणों से उन्होंने पसंद नहीं किया. शिवपाल के प्रति भी शायद तभी से राय बदलनी शुरू हुई हो.
साल 2012 के विधान सभा चुनावों में अखिलेश की ख़ूब चली. डीपी यादव को कैसे उन्होंने किनारे किया यह क़िस्सा खूब प्रचलित है. तभी से उनकी एक अलग और साफ-सुथरी छवि बननी शुरू हुई. यह शिवपाल और मुलायम की छवि से भिन्न थी.
साल 2012 के चुनाव में सपा को विधान सभा में पूर्ण बहुमत मिलने का श्रेय अखिलेश के हिस्से आया और बिल्कुल अचानक ही मुलायम ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाना तय किया. शिवपाल ने मुलायम के इस प्रस्ताव का सख्त विरोध किया. मुलायम ने कैसे उन्हें मनाया और साढ़े चार साल कैसे सरकार में खींचतान चली, यह सब ताज़ा इतिहास है.
चाचा-भतीजे के बचपन से चले आ रहे मीठे रिश्ते एक बार कड़ुवे हुए तो फिर बात बिगड़ती चली गई.

अखिलेश यादव: सिडनी से सियासत तक

अखिलेश यादव देश के सबसे युवा मुख्यमंत्री हैं. 38 साल की उम्र में मार्च 2012 में वह देश के सबसे अहम राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे.
2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अखिलेश ने अहम भूमिका निभाई थी. भारतीय राजनीति में अखिलेश युवा राजनेता के रूप में चर्चित रहे.
अखिलेश का जन्म एक जुलाई, 1973 में उत्तर प्रदेश में इटावा ज़िले के सैफई गांव में हुआ था.
उनके पिता उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव हैं. मुलायम सिंह ने ही समाजवादी पार्टी की स्थापना की थी. अखिलेश की मां मालती देवी थीं. मालती देवी मुलायम सिंह की दूसरी पत्नी थीं.
अखिलेश ने स्कूल की पढ़ाई राजस्थान के धौलपुर सैनिक स्कूल से की थी. इसके बाद उन्होंने मैसूर यूनिवर्सिटी से सिविल इन्वाइरन्मेंटल इंजीनियरिंग में बैचलर और मास्टर्स की डिग्री ली. अखिलेश ने यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी से भी पढाई की. अखिलेश यादव एक इंजीनियर, एग्रिकल्चरिस्ट और सामाजिक-राजनीतिक वर्कर हैं. सिडनी में पढ़ाई के दौरान ही अखिलेश को पॉप म्यूजिक का चस्का लगा था.
24 नवंबर 1999 को अखिलेश यादव की शादी डिंपल यादव से हुई. अखिलेश और डिपंल की दो बेटियां (अदिति, टीना) और एक बेटा अर्जुन है. अखिलेश फुटबॉल और क्रिकेट में दिलचस्पी रखते हैं. वह खाली वक्त में किताब पढ़ना, म्यूजिक सुनना और फ़िल्म देखना पसंद करते हैं.

अखिलेश का सियासी सफर

2000 में पहली बार अखिलेश यादव 27 साल की उम्र में कन्नौज से लोकसभा सांसद चुने गए. इसके बाद वह लगातार दो बार सासंद चुने गए.
10 मार्च, 2012 में अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी विधायक दल का नेता चुना गया.
15 मार्च, 2012 में वह देश में सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बने.
अखिलेश यादव के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपनी पहचान जाति से हटकर बनाई.
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