कोरोना वायरस: तबलीग़ी जमात, पुलिस, दिल्ली सरकार और केंद्र पर उठते सवाल

दिल्ली के निज़ामुद्दीन इलाक़े में मार्च में हुए तबलीग़ी जमात के कार्यक्रम के बाद अब पुलिस ने एफ़आईआर दर्ज़ कर लिया है.

तबलीग़ी जमात से जुड़े मौलाना मोहम्मद साद की खोज जारी है.
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के मुताबिक 36 घंटे के ऑपरेशन के बाद मरक़ज़ से 2361 लोगों को निकाल लिया गया है, जिसमें से 617 अस्पताल में भर्ती हैं.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना वायरस के संक्रमण के मामलों में आई अचानक बढ़ोतरी के लिए तबलीग़ी जमात को ज़िम्मेदार ठहराया है.एक प्रेस ब्रीफ़ में स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने कहा है कि संक्रमित लोगों की संख्या में अचानक आई वृद्धि तबलीग़ी जमात के लोगों के भ्रमण की वजह से है लेकिन ये ट्रेंड पूरे देश में दिखाई नहीं दे रहा है.
इसके साथ ही अब देश के 20 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए कोरोना वायरस का ख़तरा और बढ़ गया है.
तेलंगाना, तमिलनाडु दिल्ली इससे सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं.
लेकिन बाक़ी राज्य सरकारें भी कार्यक्रम में शामिल सभी लोगों को तलाशने के काम में जुट गई हैं, ताकि सभी का कोरोना टेस्ट कराया जा सके.
इसके बाद सरकार की दूसरी सबसे बड़ी चुनौती है उन लोगों को तलाश करने की, जो इन लोगों के संपर्क में आए.

आख़िर किसने और कहां देरी कर दी?

तबलीग़ी जमात का दावा है कि लॉकडाउन की घोषणा होते ही उन्होंने अपने सारे कार्यक्रम रद्द कर दिए थे. लेकिन आने-जाने की सुविधा ना होने की वजह से फंसे हुए लोग वापस नहीं लौट सके.
इसकी सूचना एसडीएम और दिल्ली पुलिस को उनकी तरफ से समय रहते दे दी गई थी.
गृह मंत्रालय के मुताबिक 21 मार्च तक पूरे देश में तकरीबन 824 विदेशी तबलीग़ी जमात के वर्कर के तौर पर भारत में काम कर रहे थे. इनमें से 216 लोग दिल्ली के निज़ामुद्दीन के मरक़ज़ में थे.
बाक़ी देश के अलग अलग राज्यों में थे. इनके आलावा 1500 देसी लोग भी दिल्ली के मरक़ज़ में शामिल थे.
ये है तबलीग़ी प्रकरण से जुड़े अब तक के अपडेट. लेकिन हर तरफ एक सवाल ये उठ रहा था कि पुलिस को पता था, प्रशासन को पता था, तबलीग़ी जमात को भी पता था, तो आख़िर ये सब हुआ कैसे.
आख़िर किसने और कहां देरी कर दी? इस मामले में हर पक्ष अलग-अलग दावे कर रहा है और पूरे मामले से पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रहा है.

दिल्ली पुलिस का दावा

मंगलवार रात दिल्ली पुलिस ने 23 मार्च का एक वीडियो जारी किया है. समाचार एजेंसी एएनआई ने इसे ट्वीट किया है.
पुलिस स्टेशन में शूट हुए इस वीडियों में पुलिस वाले तबलीग़ी जमात के लोगों से मरक़ज़ ख़ाली करने की गुजारिश करते साफ़ सुने जा सकते हैं.
3 मिनट 7 सेकेंड के इस वीडियो में पुलिस कहती सुनी जा सकती है, "दिल्ली में 5 लोगों से ज्यादा एक साथ नहीं रह सकते और सभी धार्मिक स्थल बंद हैं. मैं मोहम्मद साद साहब के नाम पर आपको ये नोटिस दे रहा हूं. इसके बाद भी आपने मरक़ज़ को ख़ाली नहीं किया तो मैं क़ानूनी तौर पर आपके ख़िलाफ़ कार्रवाई करूंगा."
इसके बाद उन्होंने बातचीत में कहा कि आप लोकल एसडीएम साहब का नंबर लेकर उनसे बात कीजिए और आगे का प्लान कीजिए.
पुलिसकर्मी ने आगे वीडियो में ये भी दावा किया है कि हमारे पास स्पेशल ब्रांच की तरफ़ से जानकारी आई है कि आज भी कुछ लोग आए हैं. साथ ही उन्हें आगाह किया कि आगे से ऐसा नहीं होना चाहिए.
23 तारीख़ के इस वीडियो में पुलिसकर्मी को ये कहते सुना जा सकता है कि तीन-चार दिन से आप से कह रहा हूं. 3-4 दिन पहले आप हरक़त में आए होते तो अब तक मरक़ज़ ख़ाली हो गया होता. मैं ख़ुद आपके सामने एसडीएम साहब से बात कर लेता हूं.
ये वीडियो यहीं ख़त्म हो जाता है.

दिल्ली पुलिस पर उठते सवाल

इस वीडियो से साफ़ पता चलता है कि 23 तारीख़ से चार दिन पहले से पुलिस को मरक़ज़ के जमावड़े की जानकारी थी. तो फिर एक्शन तब क्यों नहीं लिया गया? यानी पुलिस ने 10 दिन की देरी की.
पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को इस बात की जानकारी थी, जैसा पुलिस वाले ने दावा किया है - तो फिर चूक पुलिस की क्यों ना मानी जाए?
क्या पुलिस ने स्वास्थ्य विभाग को इस बारे में जानकारी समय रहते दी थी?
पुलिस द्वारा जारी वीडियो में आगे के एसडीएम के साथ की बातचीत नहीं है. क्या इतनी छोटी सी क्लीप ख़ास तौर पर एसडीएम के सिर सारा दोष मढ़ने के लिए जारी किया गया है?
पुलिस ने पूरे प्रकरण में बातचीत के आलावा अपनी तरफ़ से क्या कोशिश की इसका कहीं कोई जिक्र क्यों नहीं हैं?

केंद्र सरकार (गृह मंत्रालय और स्वास्थ्य मंत्रालय) का दावा

मंगलवार देर रात गृह मंत्रालय ने प्रेस रिलीज़ के माध्यम से बताया देश में फिलहाल 824 विदेश तबलीग़ी जमात के वर्कर हैं, जिनमें से 216 लोग दिल्ली के निज़ामुद्दीन के मरक़ज़ में थे. इसके आलावा 1500 देसी लोग भी दिल्ली के मरक़ज़ में शामिल हैं.
साथ ये भी दावा किया कि जो लोग वीज़ा नियमों का उलंघन करते हुए पाए जाएंगें, उनको ब्लैक लिस्ट किया जाएगा.
स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से हर दिन प्रेस ब्रीफिंग में इस बात पर जोर दिया जाता है कि वो सभी राज्य सरकारों के साथ संपर्क में हैं ताकि कोरोना वायरस के हॉटस्पॉट की पहचान कर उनसे निपटने की रणनीति तैयार की जा सकें.
गृह मंत्रालय की प्रवक्ता रोज़ कहती हैं सचिव स्तर की बात रोज़ हो रही हैं. लॉकडाउन का सख्ती से पालन हो इसके दिशा निर्देश जारी किए गए हैं.
केंद्र के स्तर पर हेल्पलाइन नंबर भी जारी किया गया है. तमाम क़ानूनी प्रवाधान हैं लॉकडाउन का उलंघन करने वालों से सख़्ती से निपटने के लिए. कोरोना संक्रमण की बात छुपाना भी क़ानूनी अपराध की श्रेणी में आता है.

केंद्र सरकार के दावों पर सवाल

क्या केंद्र सरकार के पास विदेश से इतनी बड़ी संख्या में लोग आए और कहां रह रहें हैं इसकी जानकारी देरी से हासिल हुई. आख़िर इस देरी के लिए कौन है ज़िम्मेदार?
जो लोग टूरिस्ट वीज़ा पर आकर धार्मिक गतिविधियों में लिप्त रहते हैं, वो वीज़ा नियमों का उलंघन करते हैं तो आज तक उन पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई.
ये मामला गृह मंत्रालय तक इतनी देर में क्यों पहुंचा?
कोरोना से निपटने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है विदेश से आए लोगों की जांच पड़ताल करके अलग-थलग करना. मरक़ज़ में शामिल लोग भारत कब आए थे, इसकी जानकारी सरकार ने अब तक क्यों नहीं दी.
तेलंगाना में 18 तारीख़ को जिस व्यक्ति की मौत हुई थी, क्या उसके आने-जाने और मिलने की हिस्ट्री उस वक्त नहीं खोजी गई थी. पूरे मामले का पता चलने में 10 दिन का और वक्त क्यों और कैसे लगा?
दिल्ली पुलिस गृह मंत्रालय के अंतर्गत आती है. तो क्या पुलिस के ख़िलाफ़ भी गृह मंत्रालय उसी सख्ती से पेश आएगा जैसे मजदूरों को घर भेजने में लापरवाही के मामले में देखने को मिला था.
आपको याद दिला दें तब केंद्र सरकार ने लापरवाही का हवाला देते हुए दो अफसरों को सस्पेंड किया गया था.
प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले दिनों वीडियोकांफ्रेसिंग से सभी धर्मगुरू से बात की थी. क्या तबलीग़ी जमात के प्रतिनिधि भी उस कॉन्फ़्रेंस में शामिल थे? हां तो क्या बात हुई और अगर नहीं थे, तो क्यों?
और सबसे बड़ा सवाल ये कि क्या यही है केंद्र सरकार का लॉकडाउन और कोरोना से निपटने का भारत सरकार का प्लान?

तबलीग़ी जमात का पक्ष

दिल्ली पुलिस की तरफ़ से जारी 3मिनट 07सेकेंड के वीडियों में मरक़ज़ के नुमाइंदे को भी साफ़ बोलते हुए सुना जा सकता है.
पुलिस से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा, "हमने कल ही (22मार्च को) 1500 लोगों को यहां से निकाला है. अभी दिल्ली के बाहर के 1000 लोग और रह गए हैं. लखनऊ, बनारस, खतौली जैसी जगहों के और बाक़ी दूसरे राज्यों के लोग रह गए हैं. बॉर्डर सील हैं बताइए हम क्या करें?"
पूरी घटना के बाद अपना पक्ष सामने रखते हुए तबलीग़ी जमात ने प्रेस रिलीज़ जारी कर साफ़ कहा है कि पूर्ण लॉकडाउन की एलान के साथ ही उन्होंने अपने सारे धार्मिक आयोजन बंद कर दिए थे.
24 मार्च को स्थानीय पुलिस ने मरक़ज़ को बंद करने के लिए नोटिस भेजा.
24 मार्च को ही प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन की घोषणा की, केवल 4 घंटे का नोटिस दिया गया.
26 मार्च को एसडीएम के साथ एक मीटिंग हुई. मरक़ज़ वालों ने प्रशासन से फिर मदद की गुहार लगाई
25 मार्च को 6 लोगों को टेस्ट के लिए ले जाया गया.
28 मार्च को 33 लोगों को टेस्ट के लिए ले जाया गया.
28 मार्च को एसीपी लाजपत नगर की तरफ से क़ानूनी कार्रवाई का एक नोटिस और आया,
29 मार्च को तबलीग़ी जमात ने नोटिस का जवाब दिया

तबलीग़ी जमात के दावों से उठते सवाल

सबसे अहम सवाल ये कि जब 13 मार्च को दिल्ली सरकार का निर्देश था, 200 से ज्यादा लोग जमा न हों, 16 मार्च का निर्देश था 50 से ज्यादा एक जगह जमा न हों, तो फिर 22 तारीख़ तक लोग आयोजनों में कैसे शामिल होने के लिए आ रहे थे? क्या ये उनकी लापरवाही नहीं थी?
वीडियो में मरक़ज़ से जुड़े लोग साफ़ कहते सुने जा सकते हैं, कि वहां केवल 1000 लोग हैं. दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री ने आज कहा है कि 2361 लोगों को वहां से सुरक्षित निकाला गया हैं.
मरक़ज़ में जुटे लोगों की सही संख्या आख़िर उन्होंने क्यों छुपाई? क्या मरक़ज़ में आने जाने वालों का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता?
सभी धार्मिक स्थलों को बंद करने का आदेश 16 मार्च से लागू था तो 2300 लोग एक साथ एक जगह पर क्यों और किसके परमिशन से रह रहे थे?
वहां विदेशों से लोग आ कर रहे रहे थे, ऐसे में स्वास्थ्य अधिकारियों को उन्होंने इस बात की क्या कोई जानकारी दी थी?
सोशल डिस्टेंसिंग की बात, विदेशों से आए लोगों को सेल्फ़-आइसोलेशन में रखने की पाबंदियों का क्या पालन किया जा रहा था?
कितने लोगों को बुख़ार और ख़ासी संबंधित शिकायतें कब से थी? क्या कोरोना के लक्षण और जांच से वो वाकिफ़ नहीं थे?
मरक़ज़ में लोगों को जुटाने वाले मोहम्मद साद फिलहाल कहां हैं? लोगों के सामने क्यों नहीं आते?

दिल्ली सरकार का पक्ष

दिल्ली के ओखला से विधायक अमानतउल्ला खान ने बीती रात ट्विटर पर जानकारी साझा की कि दिल्ली पुलिस को 23 मार्च को ही मरक़ज़ में हज़ारों की संख्या में लोग रह रहे हैं इसकी जानकारी दे दी थी, तो मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री से ये जानकारी कैसे छुपी रही?
इतना ही नहीं एसडीएम को इस बात की जानकारी दिल्ली पुलिस ने 23 मार्च को ही दे दी थी. ऐसा पुलिस की तरफ़ से जारी वीडियो में भी दावा किया जा रहा है.
दूसरी तरफ़ दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री ने समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में कहा है कि उन्हें रविवार को ही पहली बार पूरे घटना क्रम की जानकारी मिली.
उन्होंने तुरंत आयोजकों पर एफ़आईआर दर्ज करने की सिफारिश भी की.
दिल्ली के मुख्यमंत्री ने भी इस पूरे मामले पर प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर अपनी बात रखी. उन्होंने कहा, "इतनी बड़ी संख्या में लोगों का जमावड़ा ग़लत था. उनकी हरक़त ग़ैरजिम्मेदाराना थी. उन्हें ये सोच कर डर लग रहा है कि कितने लोगों को इससे नुक़सान पहुंचा होगा."
अरविंद केजरीवाल ने सभी धर्मगुरु से अपील की कि ऐसे आयोजन ना करें. और जिन अफ़सरों ने इस पूरे मामले में गंभीरता नहीं दिखाई उन पर दिल्ली सरकार कार्रवाई करेगी.

दिल्ली सरकार के दावों पर सवाल

दिल्ली सरकार भले ही अपनी भूमिका से पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रही हो. लेकिन सवाल उनके दावों पर भी है.
उनके विधायाक 23 मार्च को पुलिस को जानकारी दिए जाने की बात कर रहे हैं, तो सरकार सात दिन तक हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठी थी?
दिल्ली पुलिस से एफ़आईआर दर्ज करने की सिफारिश करने में उन्होंने कोई देरी नहीं की. तो एसडीएम पर चुप्पी क्यों?
दिल्ली में उनकी नाक के नीचे इतना बड़ा आयोजन चल रहा था, वहां के नेता, विधायक, मंत्री और सरकारी महकमें को इसकी भनक 15 दिन तक क्यों मिली?
क्या सरकार की तरफ़ से 13 मार्च और 16 मार्च को प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर कभी 50 लोगों के जमावड़े पर पाबंदी, कभी 5 लोगों पर पाबंदी की बात केवल मीडिया में आने के लिए थी? ज़मीनी स्तर पर इसको अमल में लाने की ज़िम्मेदारी किसकी थी. उन पर कार्रवाई कौन करेगा?

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