कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने से चीन पर क्या पड़ेगा असर

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 ख़त्म करने के भारत सरकार के फ़ैसले के ख़िलाफ़ वैश्विक समर्थन हासिल करने की क़वायद में शुक्रवार को पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने चीन का दौरा किया था.
कश्मीर पर भारत के इस क़दम का चीन ने भी विरोध किया है. चीन का विरोध विशेष तौर पर लद्दाख क्षेत्र को जम्मू-कश्मीर से हटाकर केंद्र शासित प्रदेश बनाने का है.
चीन के दौरे के बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्री क़ुरैशी ने दावा किया कि चीन ने इस मामले पर पाकिस्तान का पूरा समर्थन किया कि मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उठाया जाना चाहिए.
इसके बाद रविवार को भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर पहले से तय तीन दिवसीय यात्रा पर चीन पहुंचे. सोमवार को चीन ने ज़ोर देकर कहा कि भारत को क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए रचनात्मक भूमिका निभाने की ज़रूरत है.
कश्मीर को लेकर चीन का समर्थन पाना पाकिस्तान और भारत दोनों के लिए महत्वपूर्ण है. लेकिन अपने भौगोलिक कारणों से चीन अब तक इस मुद्दे पर पाकिस्तान का ही समर्थन करता रहा है.
कश्मीर पर भारत और पाकिस्तान दोनों ही अपना दावा करते हैं. सच्चाई यह है कि दोनों देश इसके कुछ हिस्सों पर ही नियंत्रण रखते हैं.
चीन के साथ सीमा विवाद में भारत और भूटान दो ऐसे मुल्क हैं, जो उलझे हुए हैं. भूटान में डोकलाम क्षेत्र को लेकर विवाद है तो वहीं भारत में लद्दाख से सटे अक्साई चिन क्षेत्र को लेकर विवाद जारी है.
कश्मीर पर भारत सरकार के हालिया फ़ैसले के बाद चीन की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आई है.
चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुअ चुनइंग कहती हैं, "चीन अपनी पश्चिमी सीमा पर चीनी क्षेत्र को भारत के अपनी सीमा में दिखाए जाने का हमेशा विरोध करता है."
कश्मीर पर भारत के इस फ़ैसले के बाद चीनी प्रवक्ता हुअ चुनइंग ने कहा, "हाल ही में भारत ने अपने घरेलू क़ानून में बदलाव करके चीन की संप्रभुता पर सवाल खड़ा किया है. भारत का यह क़दम अस्वीकार्य है और इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा."

किसके पास कितना कश्मीर?

1947 में भारत-पाकिस्तान के बँटवारे के बाद से ही कश्मीर दोनों देशों के बीच लगातार विवादित मुद्दा रहा है. 1947 के बाद जम्मू, भारत प्रशासित कश्मीर और लद्दाख भारत के नियंत्रण में है, वहीं पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर और उत्तरी कश्मीर (गिलगित और बालटिस्तान) पाकिस्तान नियंत्रित हैं जबकि अक्साई चिन और ट्रांस काराकोरम (शक्सगाम घाटी) चीन के पास है.
क्षेत्रफल के हिसाब से आज कश्मीर के केवल 45 फ़ीसदी हिस्से पर ही भारत का वास्तविक नियंत्रण है जबकि पाकिस्तान का लगभग 35 फ़ीसदी कश्मीर पर नियंत्रण है. बाक़ी का 20 फ़ीसदी हिस्सा चीन के नियंत्रण में है.
उधर अरुणाचल प्रदेश में लगभग 90 हज़ार वर्ग किलोमीटर पर चीन अपना दावा करता है. चीन इस इलाक़े को अनौपचारिक रूप से 'दक्षिण तिब्बत' कहता है.
दोनों देशों के बीच 3,500 किमोलीटर (2,174 मील) लंबी सीमा है. सीमा विवाद के कारण दोनों देश 1962 में युद्ध के मैदान में भी आमने-सामने खड़े हो चुके हैं, लेकिन अब भी सीमा पर मौजूद कुछ इलाक़ों को लेकर विवाद है जो कभी-कभी तनाव की वजह बनता है.
1950 के दशक के आख़िर में तिब्बत को अपने में मिलाने के बाद चीन ने अक्साई चिन के क़रीब 38 हज़ार वर्ग किलोमीटर इलाक़ों को अपने अधिकार में कर लिया था.
ये इलाक़े लद्दाख से जुड़े थे. चीन ने यहां नेशनल हाइवे 219 बनाया जो उसके पूर्वी प्रांत शिन्जियांग को जोड़ता है. भारत इसे अवैध क़ब्ज़ा मानता है और अक्साई चिन के 38 हज़ार किलोमीटर पर अपने प्रभुत्व का दावा करता है.

शक्सगाम घाटी पर चीनी नियंत्रण

अक्साई चिन के 38,000 वर्ग किलोमीटर के अलावा शक्सगाम घाटी के 5,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक इलाक़े पर भी चीन का नियंत्रण है.
काराकोरम पर्वतों से निकलने वाली शक्सगाम नदी के दोनों ओर शक्सगाम वादी फ़ैला हुआ है. 1948 में इस पर पाकिस्तान ने अपना क़ब्ज़ा जमा लिया था. बाद में 1963 में एक समझौते के तहत पाकिस्तान ने इस क्षेत्र को चीन को सौंप दिया.
पाकिस्तान का मानना था कि इससे दोनों देशों के बीच दोस्ती बढ़ेगी और साथ ही यह भी दलील थी कि चूंकि यहां पहले से अंतरराष्ट्रीय सीमा निर्धारित नहीं थी लिहाजा पाकिस्तान को इसे चीन को सौंपने से कोई नुक़सान नहीं हुआ.
इसी इलाके को लेकर पाकिस्तान ने चीन के साथ समझौता किया था. आज, चीन और पाकिस्तान यहीं बने काराकोरम हाइवे से एक दूसरे के साथ व्यापार करते हैं, जो पश्चिमी कश्मीर के ज़रिए दोनों देशों को जोड़ता है.
चीन-पाकिस्तान के बीच इस अरबों डॉलर के आर्थिक गलियारे में मल्टीलेन एस्फाल्ट की सड़कें बनाई जा रही हैं ताकि पूरे साल इनका इस्तेमाल किया जा सके.
पाकिस्तान के बुनियादी ढांचे और ऊर्जा क्षेत्र में चीन 57 अरब अमरीकी डॉलर का निवेश कर रहा है, जो किसी भी दक्षिण एशियाई देशों के मुक़ाबले कहीं अधिक है.
भारत के अनुसार अक्साई चिन और शक्सगाम आज भी जम्मू-कश्मीर का अभिन्न हिस्सा है. 6 अगस्त को इसी अक्साई चिन के बारे में भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि यह भारत का अभिन्न हिस्सा है.
दुनिया की दो सर्वाधिक आबादी वाले दो देश चीन और भारत कुछ क्षेत्रीय दावों को लेकर आपस में कई वर्षों से उलझे हुए हैं.
कभी-कभार दोनों देशों के बीच विवाद इतना बढ़ जाता है कि सीमा पर झड़प की स्थिति पैदा हो जाती है.
सीमा विवाद को लेकर दोनों देश कई बैठकें कर चुके हैं लेकिन आज तक यह मुद्दा सुलझ नहीं पाया है.


कश्मीर पर बहुत ध्यान नहीं दे सकेगा चीन

कई विश्लेषक मानते हैं कि इस समय चीन एक साथ कई घरेलू और वैश्विक मुद्दों पर साथ काम कर रहा है. लिहाजा वह पूरी तरह से कश्मीर पर ध्यान नहीं दे सकता है.
हॉन्ग कॉन्ग और ताइवान के साथ चीन के तल्ख रिश्तों और अमरीका के साथ चल रहे व्यापारिक रिश्तों में कड़वाहट से अभी वो जूझ रहा है.
कश्मीर पर अब तक पाकिस्तान को वह अंतरराष्ट्रीय समर्थन नहीं मिला है जिसकी उसको दरकार थी. कश्मीर पर चीन का ध्यान केंद्रित नहीं होने से इस पर पाकिस्तान की स्थिति और ख़राब होने की बात कही जा रही है.
अनुच्छेद 370 हटाकर जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष दर्जे को ख़त्म करने की घोषणा के बाद भी अमरीका ने कहा है कि उसने कश्मीर पर अपने रुख़ में बदलाव नहीं करने का एलान किया है.
रूस और यूएई ने भारत का समर्थन किया है जबकि पाकिस्तान को उसके एक और सहयोगी सऊदी अरब का समर्थन भी नहीं मिला.
उधर भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर ने बीजिंग में कहा कि वैश्विक अनिश्चितता के वक्त में भारत और चीन दोनों को एक मज़बूत किरदार निभाना चाहिए.
कई विश्लेषक मानते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति जिनपिंग ने इस दौरान अपने संबंधों में इस तरह कि परिपक्वता दिखाई है जिससे दोनों देशों की बीच सहयोग पर इसका असर न पड़े.
विदेश मंत्री जयशंकर के चीन के दौरे के बाद इसी महीने मोदी के पेरिस में होने वाली जी7 की बैठक में शामिल होने की संभावना है. इसके बाद अक्तबूर में एक अनौपचारिक बैठक के लिए चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग भारत आएंगे जहां मोदी से उनकी मुलाकात होने वाली है.

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