जब मोदी की पटना रैली से भागने लगे लोग

तीन मार्च. रविवार को सुबह के सवा आठ बजे थे. पटना के बेली रोड को आम वाहनों के लिए बंद किया जा चुका था.
सड़क के एक तरफ की लेन पर पैदल लोग गांधी मैदान की ओर जा रहे थे जहां एनडीए ने संकल्प रैली बुलाई थी.
हाथों में अपनी-अपनी पार्टियों के झंडे, बैनर और तख्तियां लेकर "ज़िंदाबाद-ज़िंदाबाद" के नारे लगाते हुए जत्थों में लोग चल रहे थे. दूसरे तरफ की लेन पर केवल प्रशासनिक अधिकारियों, पुलिस वाहनों और नेताओं-मंत्रियों के वाहनों की आवाजाही हो रही थी.
सुबह के इसी वक्त पटना के जय प्रकाश नारायण हवाई अड्डे पर जम्मू-कश्मीर के हंदवाड़ा में चरमपंथियों के साथ मुठभेड़ के दौरान मारे गए सीआरपीएफ़ के इंस्पेक्टर पिंटू सिंह का शव पहुंचा था.
वहां से जो खबरें मिल रहीं थीं उनके मुताबिक एयरपोर्ट पर इंस्पेक्टर को श्रद्धांजलि देने के लिए राजनीतिक दलों से सिर्फ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा पहुंचे थे.
बेली रोड पर चलते हुए एनडीए के नेताओं और कार्यकर्ताओं का गांधी मैदान जाने के लिए उत्साह देखकर यह महसूस किया जा सकता था कि बाकी कोई नेता और पार्टी के लोग इंस्पेक्टर पिंटू सिंह को श्रद्धांजलि देने क्यों नहीं पहुँच सके थे.
चल रहे लोगों में किसी ने नरेंद्र मोदी का मुखौटा पहना था तो कोई नीतीश का मुखौटा लगाकर पार्टी का झंडा थामे था. एयरपोर्ट से बेली रोड के रास्ते ही नरेंद्र मोदी का भी काफिला गांधी मैदान पहुंचने वाला था. इस नाते सड़क के दोनों ओर पुलिस बलों की भारी तैनाती की गई थी.

कैसी रही संकल्प रैली?

बेली रोड से इनकम टैक्स गोलंबर और डाकबंगला चौराहा होते हुए गांधी मैदान के रास्ते में बैनरों, पोस्टरों और झंडों को देखकर ये अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि वो सब रातों रात नहीं लगे थे.
लेकिन उन पोस्टरों और झंडों में सबसे अधिक जेडी(यू) के दिख रहे थे. हालांकि, हरेक पोस्टर में मोदी थे. लेकिन सबसे अधिक पोस्टर और झंडे तीर के निशान वाले दिखते.
हर जगह सबसे शिखर पर जेडी(यू) का झंडा था. शनिवार की देर रात भाजपा के प्रदेश मुख्यालय पर पार्टी पदाधिकारियों के बीच इसकी भी चर्चा हो रही थी कैसे इन झंडों को स्ट्रीट लाइट वाले खंभों से बांधने के लिए क्रेन का इस्तेमाल किया गया.
पार्टी की कुछ महिला प्रदेश पदाधिकारी कह रही थीं कि "पोस्टर-बैनर लगाने में जेडी(यू) ने मनमानी की है. उनके पोस्टर हर जगह छाए हैं. झंडा भी खुद का ही सबसे उपर लगाया है. सरकार होने का फायदा उठाया है."
पोस्टर बैनर लगाने को लेकर भाजपा की नाराज़गी सड़क पर भी दिख रही थी. जो लोग संकल्प रैली में भाग लेने के लिए गांधी मैदान की ओर जा रहे थे उनमें से प्राय: हर किसी के हाथ में जेडी(यू) का झंडा था. कुछ ही हाथों में बीजेपी के झंडे दिखते.
स्थानीय मीडिया में ये खबरें चलनें लगी कि जेडी(यू) ने भाजपा की रैली को हाईजैक कर लिया है.

संख्या का अंदाज़ा लगाना मुश्किल

गांधी मैदान के जिन गेटों से आम लोगों का प्रवेश था उनके सामने तथा किनारे जो झंडे फेंके गए थे उनमें बीजेपी का झंडा मुश्किल से पहचान में आ रहा था.
ये झंडे लोगों से गांधी मैदान में प्रवेश के पहले ही रखवा दिए गए थे. इसलिए गांधी मैदान में जमा भीड़ में किसी का कुछ पता नहीं चल पा रहा था कि कौन किस पार्टी का आदमी है.
अपने तय कार्यक्रम के मुताबिक दोपहर के 12 बजकर 15 मिनट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गांधी मैदान में आ चुके थे.
उस वक्त गांधी मैदान में कितनी भीड़ थी, सही बता पाना मुश्किल है. क्योंकि एक जगह खड़े होकर भीड़ का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता था.
जब कुछ फोटो जर्नलिस्टों ने गांधी मैदान से सटी ऊँची बिल्डिंगों जैसे बिस्कोमान भवन और पनाश होटल की छत पर जाकर तस्वीरें लेनी चाही तो पुलिस प्रशासन ने उन्हें सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए रोक दिया.
स्थानीय फोटो जर्नलिस्ट आनंद ने बताया, "हर बार जब गांधी मैदान में रैलियां होती हैं, तो तस्वीरों के ज़रिए भीड़ दिखाने के लिए हमलोग इन्हीं बिल्डिंगों को सहारा लेते हैं. देखिए अब अगर बार कोई जा पाए तब तो! क्या पता इसलिए भी सबको रोक दिया गया हो!"
जैसे ही नरेंद्र मोदी गांधी मैदान आए, आसमान में घटाएं छानी शुरू हो गई थीं. उनसे पहले सुशील मोदी, रामविलास पासवान और नीतीश कुमार ने अपना संबोधन दिया. इसलिए लोगों को मोदी के भाषण के लिए इंतज़ार भी करना पड़ा.
सबसे आखिर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संबोधन के लिए आमंत्रित किया गया.

और जब मोदी बोलने आए

मोदी के बोलने के लिए खड़े होते ही भीड़ भी खड़ी हो गई. उन्होंने माइक संभाला और बोलना शुरू किया.
हिंदी, भोजपुरी, मगही और मैथिली में बारी-बारी से अभी लोगों को प्रणाम ही कर रहे थे कि अचानक गांधी मैदान से उठकर लोग भागने लगे.
तेज़ बारिश आ गई थी. उधर मोदी का संबोधन हो रहा था, इधर बारिश तेज़ होती जा रही थी. जो एकदम आगे थे वे तो नहीं निकल सके. मगर पीछे वाले लोग बारिश से बचने के लिए मैदान के बाहर जाने लगे.
संबोधन चलता रहा. कुछ देर तक बारिश हुई. मगर तबतक नज़ारा बदल गया था. आधा संबोधन पूरा होने तक गांधी मैदान की भीड़ तितर-बितर हो चुकी थी.
अपने भाषण में आधे हिस्से के बाद ही मोदी ने विपक्ष पर निशाना साधना शुरु किया. पुलवामा हमले के बदले का ज़िक्र किया, बालाकोट हमले में सबूत मांगने वालों पर सवाल उठाए और खुद को "चौकन्ना चौकीदार" कहा.
भाषण के आख़िर में जो लोग गांधी मैदान में बचे थे वो उसी दरी को बारिश से बचने के लिए ओढ़ रखे थे जो पहले से बिछी थी.

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