पाकिस्तान से मिली हार ने हमें वो याद दिला दिया जिसे बरसों से भूलना चाह रहे थे


23 मार्च 2003 को इंडिया का ऑस्ट्रेलिया से मुकाबला था. साउथ अफ्रीका के जोहनसबर्ग में दोनों वर्ल्ड कप फाइनल में आमने-सामने थे. इंडिया 1983 का वर्ल्ड कप जीतने के बाद पहली बार इस टूर्नामेंट के फाइनल में पहुंची थी. खूब तारीफ हुई थी सौरव गागुंली की कप्तानी वाली इस टीम की. और टीम इसकी हकदार भी थी क्योंकि शुरू के कुछ मैच हारने के बाद देश में क्रिकेटरों के घरों पर खूब पत्थर पड़े थे. फिर टीम ने जबरदस्त वापसी की और फाइनल तक पहुंच गई. मगर जिस तरीके से हम फाइनल हारे, आज तक उस कड़वी हार को भूला नहीं पाए हैं. अब पाकिस्तान के खिलाफ चैंपियंस ट्रॉफी फाइनल हारने के बाद ये जख्म हरा सा हो गया है. कारण, दोनों फाइनल्स में बहुत सारी बातें एक सी हैं.

फ़खर ज़मान और एडम गिलक्रिस्ट

पाकिस्तान के इस ओपनर की 114 रन की पारी देख इंडिया को 2003 के इसी फाइनल की याद सबसे ज्यादा आई. इस लेफ्टी ने 106 गेंदों में 3 छक्के और 12 चौके मारकर ये पारी खेली. सबसे पहली बात ये कि 2003 के उस फाइनल में भी शुरुआत एडम गिलक्रिस्ट के बल्ले से हुई थी. दूसरा, दोनों लेफ्टी हैं. तीसरा, फ़खर गिलक्रिस्ट को अपना गुरू मानते हैं. चौथा, इन दोनों मैचों में इंडिया के लिए एक नो बॉल मनहूस साबित हुई. इस मैच के दूसरे ओवर में फ़खर जसप्रीत बुमरा की गेंद पर धोनी के हाथों लपके गए थे. मगर रिव्यू में दिखा कि बुमरा का पैर लाइन से बाहर था. ये मैच का दूसरा ओवर था और सबको अंदाजा भी नहीं था कि करियर का तीसरा मैच खेल रहा ये खिलाड़ी इस जीवनदान को इतना स्पेशल बना देगा. ठीक इसी तरह ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पारी की पहली गेंद भी जहीर खान ने नो बॉल फेंकी थी.

टॉस और फील्डिंग

दोनों मैचों में इंडिया ने टॉस जीता और फील्डिंग करने का फैसला किया. ये फैसला इसलिए किया गया क्योंकि टीम रनचेज करते हुए दोनों टूर्नामेंट में फाइनल में पहुंची थी. अब पहले बैटिंग मिलते ही पाकिस्तान ने इस मैच में 338 रन ठोंक दिए और ऑस्ट्रेलिया ने 360 रन का टारगेट इंडिया को दे दिया था. अब इतने प्रेशर गेम में इतना बड़े स्कोर का पीछा करना आसान बात तो नहीं थी मगर इंडिया ने ये दोनों मैच बड़े अंतराल से हारे. ऑस्ट्रेलिया ने 125 रन से हराया और पाकिस्तान से हम 180 रन से हारे. पाकिस्तान के हाथों मिली ये करारी हार किसी भी ICC टूर्नामेंट के फाइनल में हार का सबसे बड़ा अंतराल है. पूरे मैच में कभी लगा ही नहीं कि इंडिया ने वापसी की हो.

 तेंडुलकर और कोहली

ये वो नाम हैं जो इन दोनों टूर्नामेंट में खूब चले और जिनसे फाइनल में बहुत उम्मीदें थीं. IPL में खराब फॉर्म के बावजूद चैंपियंस ट्रॉफी में बेहतरीन वापसी करने वाले विराट कोहली से हर मैच जिताने की उम्मीद पल गई थी. और ये उम्मीद उनके लगातार अच्छे प्रदर्शन से मिली थी. चैंपियंस ट्रॉफी के 5 मैचों  में कोहली ने 258 रन बनाए. सेमीफाइनल में बांग्लादेश के खिलाफ नाबाद 96 रन और साउथ अफ्रीका के खिलाफ नाबाद 76 की पारियां खेलीं. ठीक इसी तरह सचिन तेंडुलकर ने 2003 के वर्ल्ड कप में हर टीम के खिलाफ रन ठोंके.  61.18 के औसत से 673 रन. ये किसी भी खिलाड़ी द्वारा किसी एक टूर्नामेंट में सबसे बड़ा आंकड़ा है. कोहली और तेंडुलकर दोनों ने अच्छी फॉर्म और रिकॉर्ड्स के बावजूद फाइनल में निराश किया. ग्लेन मैक्ग्राथ की गेंद पर सचिन 4 रन पर ही आउट हो गए थे. वहीं कोहली भी पाकिस्तान के साथ इस फाइनल में वही करते दिखे, 5 रन पर आउट हो गए.

पंड्या और सहवाग

इतना बड़ा टारगेट होने के बावजूद सबको ये उम्मीद थी कि टीम इंडिया के लिए ये स्कोर बड़ा नहीं है. रोहित शर्मा, शिखर धवन, विराट कोहली, धोनी, युवराज, जडेजा, जाधव और पांड्या जैसे प्लेयर्स के बावजूद टीम 158 रन पर आउट हो गई. ठीक इसी तरह ऑस्ट्रेलिया के 359 रन के जवाब में टीम इंडिया 234 रन पर ऑलआउट हो गई. सचिन तेंडुलकर, सहवाग, द्रविड़, गांगुली, मोहम्मद कैफ, युवराज सिंह और दिनेश मोंगिया सरीखे प्लेयर्स वाली बैटिंग लाइन अप इतनी आसानी से घुटने टेक गई. अब दोनों मैचों में इंडिया की तरफ से अगर किसी ने थोड़ा दम दिखाया तो वे हैं- हार्दिक पंड्या और वीरेद्र सहवाग. पंड्या ने 43 गेदों में 76 रन मारकर ध्यान खींचा. इसमें 6 छक्के और चार चौके शामिल थे. पंड्या शतक भी मारे सकते थे मगर रवींद्र जडेजा के साथ हुई कंफ्यूजन के चलते रन आउट हो गए. इसी तरह 2003 के फाइनल में सहवाग एक छोर पर रन बनाते रहे थे. 81 गेंदों में 82 रन बनाने वाले एक छोर पर रन बनाते रहे थे. 81 गेंदों में 82 रन बनाने वाले सहवाग ने उस पारी में तीन छक्के और 10 चौके जड़े थे. अब पंडया के साथ समानता ये कि उस मैच में सहवाग भी रन आउट हुए थे.

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