'नरेंद्र मोदी से मुलाकात से बिगड़ा राहुल गांधी का खेल'


'नोटबंदी प्रधानमंत्री मोदी की बनाई हुई आपदा है.' प्रधानमंत्री मोदी पर हमला करते वक्त कांग्रेस नेता राहुल गांधी का सारा ध्यान इस बात को साबित करने पर रहा.
राहुल ने अपनी पार्टी और विपक्ष के साथ मिलकर सरकार पर लगातार हमले किए हैं, ख़ासकर प्रधानमंत्री मोदी के नोटबंदी के फ़ैसले पर.
इस फ़ैसले के चलते भारत का असंगठित क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ है.
इस मुद्दे पर सबसे पहले सड़क पर उतर कर राहुल गांधी ने विपक्ष को भी चौंकाया था. वो सबसे पहले पैसे बदलवाने के लिए लंबी क़तार में खड़े हुए और उसके बाद पैसा निकालने के लिए भी लाइन में लगे.
कांग्रेस पार्टी ने भी उनका पूरा साथ दिया, पार्टी ने सड़कों पर धरना प्रदर्शन किए और ख़ास बात ये है कि संसद के दोनों सदनों में मज़बूत अभियान चलाया.
संसद में एक महीने के शीतकालीन सत्र के दौरान कांग्रेस के सांसदों ने प्रधानमंत्री का लगातार विरोध किया जिसके चलते दोनों सदनों की कार्यवाही बाधित होती रही.
पार्टी ने ये साफ़ किया कि वह गरीबों के साथ खड़ी है और उसके दावे के मुताबिक नोटबंदी का सबसे ज्यादा असर इसी तबके पर पड़ा है.
राहुल गांधी इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करते रहे. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने भी प्रधानमंत्री के फ़ैसले की आलोचना की. ये आलोचनाएं दमदार तरीके से की गईं.
संसद के अंदर भी कांग्रेस पार्टी विपक्ष को एकजुट करने में कायमाब रही और सत्र के आख़िरी सप्ताह तक ऐसा लगने लगा कि पार्टी विपक्ष की आवाज़ को मज़बूती से उठा रही है और कमजोर पड़े विपक्ष को एकसाथ जोड़ सकती है.
दूसरी पार्टियों के नेताओं के साथ भी आपसी तालमेल दिखा और सदन के अंदर कई दिन नहीं बल्कि सप्ताहों तक विपक्ष ज़्यादा असरदार नज़र आया. 16 राजनीतिक दलों ने संयुक्त तौर पर नोटबंदी के मुद्दे पर सत्र के आख़िरी दिन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मिलने की घोषणा की, इस पहल में भी कांग्रेस नेतृत्व की भूमिका में दिखी.
विपक्ष के दूसरे दलों में भी राहुल गांधी को लेकर प्रशंसा का भाव दिखा. उन्होंने अपने राजनीतिक पत्ते सही अंदाज़ में फेंके. सदन के अंदर उन्होंने एक क़दम आगे जाकर ये भी कहा कि उनके पास ख़ुलासा करने को बेहद अहम जानकारी है. कांग्रेस और समूचे विपक्ष ने अपनी रणनीति को थोड़ा बदलते हुए ये भी कहा कि वे नोटबंदी के मुद्दे पर बहस के लिए तैयार हैं और इस बहस के नेतृत्त की ज़िम्मेदारी राहुल गांधी को दी गई.
लेकिन अभूतपूर्व मामला तब देखने को मिला जब सत्ता पक्ष ने कई दिनों तक संसद की कार्यवाही को ठप रखा, सत्ता पक्ष ने विपक्ष को नोटबंदी के मुद्दे पर बहस का मौका ही नहीं दिया.
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, "स्वतंत्र भारत के इतिहास में ये पहली बार देखने को मिला है जब सरकार के मंत्री ही लोकसभा की कार्यवाही को बाधित कर रहे थे, जबकि यह विपक्ष का अधिकार है."
सरकार का रूख भी रक्षात्मक नज़र आया. सदन की समाप्ति वाले दिन से एक दिन पहले, सदन की कार्यवाही बाधित होने के बाद राहुल गांधी ने सदन परिसर में मीडिया से बातचीत में आरोप लगाया कि उनके पास प्रधानमंत्री के निजी भ्रष्टाचार के पुख़्ता सबूत हैं और वे उसकी जानकारी सदन में रखना चाहते हैं.
भारतीय जनता पार्टी ने राहुल गांधी के दावे को जोक बताया, लेकिन इस बार राहुल पर भरोसा करने वाले लोगों की संख्या ज़्यादा दिख रही है.
ये भी लग रहा है कि विपक्षी दल कांग्रेस का समर्थन कर रहे हैं और इस तरीके से भारतीय जनता पार्टी को कॉर्नर में रखने के कोशिश की जा रही है.
संसद के सेंट्रल हाल में इस बात को लेकर अनुमान लगाए जा रहे थे राहुल गांधी के पास क्या सबूत हो सकते हैं, विपक्षी पार्टी का कोई नेता उनकी बात को संदेह की नज़र से नहीं देख रहा था.
ऐसे में राहुल गांधी बनाम नरेंद्र मोदी की तर्ज पर एक फेसऑफ़ जैसी सूरत बन गई थी. कांग्रेस पार्टी और विपक्ष को उम्मीद थी कि संसद के आख़िरी दिन वे अपना पक्ष और मज़बूती से रख पाएंगे.
16 दिसंबर की सुबह, राहुल गांधी कई कांग्रेसी नेताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले. कांग्रेस पार्टी के बाहर किसी को कोई सूचना तक नहीं थी.
समूचा विपक्ष सकते में आ गया कि जो नेता संसद के अंदर प्रधानमंत्री को 'एक्सपोज़' करने की धमकी दे रहा था, वह 'चुपके से' प्रधानमंत्री से मिलने पहुंच जाता है और उन्हें किसानों के मुद्दे पर एक ज्ञापन सौंपता है.
प्रधानमंत्री ने प्रतिनिधि मंडल को केवल चार मिनट दिए, लेकिन इतने ही समय में उन्होंने ये सुनिश्चित कर दिया कि विपक्ष ने संसद के पूरे सत्र के दौरान जो बढ़त हासिल की थी, वह मिट गई.
विपक्ष की एकता बिखर गई और राष्ट्रपति से मुलाकात करने के दौरान कांग्रेस के साथ केवल दो राजनीतिक पार्टियां शामिल हुईं. बाक़ी सभी अनुपस्थित रहे. राहुल गांधी ने ना केवल मौका गंवाया बल्कि जो कुछ भी उन्होंने हासिल किया था, उसे अपने ही हाथों नष्ट कर दिया.
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता प्रफुल्ल पटेल ने निराशा ज़ाहिर करते हुए कहा भी है कि ये बैठक संसद के स्थगित होने तक क्या रोकी नहीं जा सकती थी? दूसरे दलों के प्रतिनिधियों के मुताबिक प्रधानमंत्री से मुलाकात का फ़ैसला जिस तरह से राहुल गांधी ने लिया है, उससे संसद के बाहर विपक्ष की एकता को धक्का पहुंचा है.
इस तरह कांग्रेस ने एक बार फिर से ख़ुद को अलग थलग कर लिया.
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
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